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आधी आबादी का अस्तित्व और मानवाधिकार

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हमारा देश पुरुष प्रधान देश है एक अरसे से आधी आबादी पर अत्याचार तथा शोषण हो रहा है ।शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण स्तर पर महिलाएं ज्यादा कष्टकारी जीवन जीने को मजबूर है।सरकार द्वारा तमाम कोशिशों और सामाजिक जागरूकता के बावजूद भी आधी आबादी को अपना अधिकार नहीँ मिल पाया है।देश प्रगति की ओर अग्रसर है लेकिन आजभी आधी आबादी को भेदभाव सहना पड़ रहा है।आज भी पुरुषोंकी तुलना में महिलाओं को मजदूरी दर कम दिया जाता है जबकि सरकार के अनुसार समान काम के समान मजदूरी मिलना चाहिए परन्तु जमीनी स्तर पर वास्तविकता कुछ ओर ही है ।घरेलु हिंसा दहेज उत्पीड़न जैसी समस्या उच्च वर्ग मध्य वर्ग तथा निम्न वर्ग में आम हो गयी है।आए दिन दहेज उत्पीड़न का मामला अख़बार की सुर्खिया बनी रहती है ।एक बड़ा तबका आधी आबादी पर पाबंदी लगाकर उनका शोषण कर रहा है।नोकरी करने की मनाही ,अपने इच्छानुसार वैवाहिक संबंध नहीं होना भी मुख्य समस्या है ।देश के लिंगानुपात को देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस प्रकार आधी आबादी के अस्तित्व को खतरा है।कन्या भ्रूण हत्या ,लिंग परीक्षण सरकारी रोक के बावजूद चोरी छिपे चल रहा है जिसका बुरा प्रभाव समाज पर पड़ रहा है।बेटी को जन्म देने से पहले मौत की नींद सुला दी जाती है।इन समस्याओं के अलावा छेड़छाड़ ,बलात्कार जैसी घटनाएं भी महिलाओं को आगे बढ़ने तथा अपने अनुरूप जीवन जीने में अवरोध पैदा कर रही है ।महिलाएं पुरुषों की भांति खुद को सुरक्षित नही मान पाती।
महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रही हैं।देश के सर्वोच्च पद पर खुद को स्थापित कर आधी आबादी ने साबित कर दिया कि वे पुरुषो से कम नहीं है।आधी आबादी न्यायालय ,राजनीती,यूपीएससी,डॉक्टर ,इंजिनरिंग ,बैंक ,सेना आदी जगहों पर खुद को स्थापित कर अपनी शक्ति को साबित कर दिया है कि वे भी पुरुषों से कम नही है।
महिलाओं को सामाजिक समस्या के साथ साथ स्वास्थ्य की भी समस्या है ।11 राज्यों में आधी से अधिक महिलाएं और लड़कियां एनीमिया (रक्त की कमी ) जैसी बीमारी से ग्रसित है।सरकार द्वारा इस बीमारी से निपटने के लिए कई उपाय किये गए हैपरन्तु यह उपाय कारगर साबित नही हुआ । गर्भवती महिलाओं में रक्त की कमी की वजह से जन्मित बच्चों का कुपोषित होने का खतरा बढ़ जाता है और कभी कभी अधिक रक्त स्राव से महिला की जान भी चली जाती है । महिला शशक्तिकरण के लिए सामाजिक संगठन,गैर सरकारी संगठन ,स्वयं सहायता समूह आदि तमाम तरह के प्रयास कर रहे हैं जिससे सशक्तिकरण की दिशा में कुछ सुधार जरूर हुआ है लेकिन अभी भी बहुत सुधार बाकी है । सुधार की पहली सीढ़ी जागरूकता से शुरू होती है जब तक देश में पुरुष प्रधान सोच रहेगी तबतक महिलाओं का अस्तित्व खतरे में रहेगा ।आज भी महिलाओं को भोग की वस्तु से कुछ अधिक नहीं सोचा जाता है।
मानवाधिकार के बारे में जानकारी कम होने की वजह से महिलाओं का शोषण ज्यादा हो रहा है।मानवाधिकार को तक पर रखकर आधी आबादी का शोषण जारी है। मानवजीव चाहे वह स्त्री हो या पुरुष सभी को समान अधिकार प्राप्त है।अशिक्षित होने के कारण भी महिलाएं अपने अधिकार को नही जान पाती।आत्मनिर्भर नही होने के कारण आधी आबादी दबा कुचला जीवन जीने को विवश है । कानून के नजर में भी बेटा और बेटी को समान अधिकार प्राप्त है बेटी का भी अपने पिता के सम्पति में बेटा जितना अधिकार है। पिछड़े जगहों में महिलाओ के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है ।मानवीय अधिकार से वंचित करने वाले पुरुष पर क़ानूनी कारवाही हो सकती है।
आधी आबादी शिक्षित और आत्मनिर्भर हो जाने से वे अपना अधिकार ले पाएंगी और शोषण के खिलाफ आवाज उठा पाएंगी ।वर्तमान परिदृश्य को देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि आधी आबादी के अस्तित्व पर किस प्रकार का खतरा मंडरा रहा है।

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