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शराबबंदी का फैसला सराहनीय
बिहार सरकार ने अपने चुनावी वादे को निभाते हुए १अप्रेल से राज्य में देशी तथा मसालेदार शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया था। देसी शराब के प्रतिबंधित होने से ग्रामीण महिलाओं में एक ओर जहां खुशी का माहौल था वहीं दूसरी ओर शहरी क्षेत्र की महिलाओं द्वारा विदेशी शराब पर भी प्रतिबंध लगाने की मांग की जाने लगी। धीरे धीरे यह मांग एक समाजिक आन्दोलन में तब्दील हो गया। बिहार में जगह जगह प्रदर्शन कर पूर्ण रूप से शराब पर प्रतिबंध लगाने की मांग तूल पकड़ती गयी। अंत में बिहार सरकार द्वारा गंभीरता पूर्वक विचार करने के बाद ५ अप्रैल से राज्य में सभी प्रकार के शराब की बिक्री तथा पीने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अब राज्य के किसी होटल,पब आदि जगहों पर शराब नहीं मिलेगी। सूबे में पुलिस पदाधिकारियों तथा आम लोगों द्वारा शपथग्रहन समारोह का आयोजन कर शपथ ली गई कि ना तो शराब पीयेंगे ना ही पीने देंगे। बिहार शराब प्रतिबंधित करनेवाला चौथा राज्य बन गया है इसके पूर्व गुजरात,मिज़ोरम,नागालैंड में शराब प्रतिबंधित है । राज्य सरकार के इस निर्णय से राज्य में जहां खुशी का माहौल है वहीं एक तबक़ा सरकार के निर्णय से नाराज है। हालांकि सरकार के शराबबंदी का निर्णय आर्मी कैंटिन में लागू नहीं होगा तथा दवा के रूप में डाक्टरों द्वारा प्रेसक्राइब लोगों पर यह कानून लागू नहीं होगी । शराब पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाना बिहार सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। बिहार राज्य की सीमा कई राज्यों से सटी हैं जहां शराब प्रतिबंधित नहीं है।अन्य राज्यों से तस्करों द्वारा बड़े अधिकारियों की मिलीभगत से शराब तस्करी कर शराब बिहार लाया जा सकता है अन्य राज्यों से शराब तस्करी रोकना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है। बिहार सरकार को शराबबंदी से कई प्रकार का नुकसान उठाना पड़ सकता है । हरवर्ष शराब की बिक्री से आने वाले टैक्स से राज्य ससरकार को हाथ धोना होगा।शराबबंदी का प्रभाव राज्य में आने वाले सैलानियों पर भी पड़ सकता है। इनसब के बावजूद बिहार सरकार के निर्णय से शराब सेवन से होने वाले नुकसान से राज्यवासी बच सकेंगे ।शराबबंदी से अपराधिक घटनाओं के साथ साथ घरेलु हिंसा में भी कमी आयेगी ।बहरहाल देखना यह होगा कि बिहार सरकार इस निर्णय को कितना कड़ाई से लागू करती है और आम लोग किस प्रकार समाजिक जागरूकता चलाकर शराब जैसी बुरी चीज से खुद को दूर रख पाते हैं।
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