Pradeep
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बीत चुका वो दौर के जब हम तुम्हें थे चाहते, मोहब्बत तो अब भी है, पर अब आँख से आंसू नहीं आते| जाने किसका फैसला था की दिल की बात दिल में दफ्न कर दी, सुनते हमें गर, तो हम जरूर बताते| सीख लिया हमने, हदों में रहकर मोहब्बत करना, उठा लूँ नकाब की थक गए ये दोस्ती निभाते| सदा देना अब के गर यकीं हो, बंद दरवाजे सनम बेवजह नहीं खटखटाते|
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