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ये आदम भी क्या उसी खुल्द से आते है..!!!

Pradeep
Pradeep
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 इश्क़ मुक़र्रर ना हुआ तो हुस्न जला जाते है, ए चातक, ये आदम भी क्या उसी खुल्द से आते है | हमने तो ख़ुदा कि नेमत माना, इश्क़ को कोई और नाम ना दिया, क्या मालूम था मगर, ये शौक अब, जाहिल भी अपनाते है | मैं कैद कर के रख दूँ बेटियाँ अपने ही घर में, ऐसी मेरी फितरत ना थी, मगर ज़माने के ये हाल देख, मेरे ख्याल बदल जाते है | अस्मतें लुटती रही, और हमने सीखी बस सियासत करनी, क्या रगों में बहते लहू का सौदा, हम पानी से कर के आते है |

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