Pradeep
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सब जानते हो मगर, अनजान बने रहते हो, कुछ इस तरह तुम, परेशान किये करते हो| मुश्किल हुआ जाता है, तुमसे बात करना, इशारा तो करते हो, नादान बने रहते हो| जानते हो के तुमसे, कभी कह ना पाएंगे, फिर क्यों बेवजह हमारा, इम्तिहान लिए रहते हो| कम ही मिलते है जमाने में, दीवाने हम जैसे, फिर क्यों मेहमान-ए-जवानी में, खुद को बियाबान किये रहते हो|
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