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जब लड़कपन के दिन थे..(ग़ज़ल)

Pradeep
Pradeep
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 हम तो महज आशिक़ थे, हमे दूर से देखना अच्छा लगता था, अपने लड़कपन में उनका ये शौक भी, सच्ची मोहब्बत लगता था | . उनको ख्वाबो में लिए जो भरते रहे रंग, हम अपनी रातों में, हर नयी धूप, नए चेहरे के आगे, बहुत फीका लगता था | . उनको जज्बातों में भरकर, जो कोशिशे कि मैंने मजनू बनने की, माँ की थपकियों के आगे मगर, मैं फ़क़त बच्चा लगता था | . मेरी वाली, तेरी वाली, तेरी भाभी, मेरी भाभी, अपनी इन्हीं खुशफहमी में जीना, जिंदगी लगता था |

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