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शहीदों की चिताओं पे लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मरने वालो का यही बाकी निशाँ होगा |
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हिंदी दिवस पे पखवारे के आयोजन का विज्ञापन देखा तो ये पंक्तियाँ याद आ गयी | ऐसा लगा मानो हिंदी दिवस नहीं बल्कि हिंदी की बरसी मना रहे हो | सा आयोजन कितना औचित्यपूर्ण है, ये जानने से पहले ये देखिये की इसका उद्देश्य क्या था | और जो उद्देश्य था क्या उसकी पूर्ति हुई या उसके लिए कोई कदम उठाये गए| और मेरा अनुभव कहता है कि ये मात्र एक रस्म अदायगी ही रही | आप आये, दो बोल आपने बोले, हिंदी के प्रति कटिबद्धता दिखाई और इतिश्री कर ली | मानो हिंदी को श्रद्धांजलि अर्पित कर दी हो | और उसके बाद क्या हुआ, क्या परिणाम आया, कुछ नहीं | अगले साल फिर आयोजन होगा, अगले साल आप फिर यही से शुरू करेंगे | आप हिंदी के प्रति इतने ही कटिबद्ध थे तो ये कटिबद्धता आपने तब क्यों नहीं दिखाई जब सरकार ने देश के सबसे बड़ी परीक्षा ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ में अंग्रेजी को अनिवार्य बनाया, तब क्यों नहीं दिखाई जब आपके बच्चे को विद्यालय में हिंदी बोलने के लिए जुरमाना भरना पड़ा, तब क्यों नहीं दिखाते जब बड़े सम्मलेन में आपको मंच पर बुलाया जाता है, और आप अपना भाषण ‘Good Morning’ से शुरू करते है और ‘Thank you’ पर खत्म, तब क्यों नहीं दिखाते जब आम बोल-चाल की भाषा में भी आप जबरदस्ती अंग्रेजी ठूंसते हुए रहते है| हिंदी के प्रति कटिबद्धता दिखानी ही है तो इसे व्यवहार में लाओ, ना की बाज़ार में |
जिस भाषा का अस्तित्व इस सभ्यता के आदिकाल से ही हो वो भाषा हमारी विरासत है, हमारी पितरों की भाषा है | जो भाषा सर्वाधिक विदेशी आक्रमण का सामना कर आज भी गौरव के साथ खड़ी हो वो गर्व की भाषा है | जिस भाषा ने हथियार बनकर एक स्वतन्त्रता आन्दोलन लड़ा हो, वो भाषा महान है| जिस भाषा की नींव पर एक पूरा राष्ट्र खड़ा हो वो भाषा देश से प्रेम की भाषा है | जिस भाषा में डूबकर कितने महाकाव्य रचे गए हो, वो भाषा सौंदर्य की भाषा है | जिस भाषा के पहले अक्षर ‘ॐ’ में सारा विश्व समाया हो, वो भाषा अध्धयन की भाषा है | जिस भाषा को देश के सबसे बड़े भूभाग में बोला जाता है वो हमारी भाषा है, राष्ट्रभाषा है | ऐसी भाषा सम्मान की हकदार है, प्यार की हकदार है, आपकी कोरी सहानुभूति की नहीं |
मुझे पखवाड़े के आयोजन से कोई आपत्ति नहीं, मगर ये पखवाड़े के नाम पर ये दिखावा क्यों, ये छलावा क्यों | हिंदी के उत्थान की बात करते हो तो, संकल्प लेते हो तो उन्हें पूरा करने की ओर कुछ कदम तो बढाओं| ये कथनी और करनी में अंतर क्यों? अगले साल अगर फिर हिंदी की याद आये, फिर आप कोई आयोजन करे, तो जरुर विचार करियेगा मेरी बात पर |
हिंदी को प्रणाम के साथ ही आपको नमस्कार |
जय हिन्द, जय हिंदी |
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