Pradeep
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इक प्रेम प्रतीती को पढ़कर, हया हिचक सब को तजकर, ये हिय चाहे सब बोल दूं, मैं भाव हिया के खोल दूं। पर भाव संग एक भय रहता है, ना खो दूं तुमको, मन कहता है। जिस पर बीते वो ही जाने, दोस्ती में जब प्यार पनपता है। जिस प्रेम को खोजा गली-गली, वो सिर्फ मिला बस तुम में ही। हाँ भाव हिया के अब कहता हूँ, हाँ मैं प्रेम, मैं प्रेम तुम्हीं से करता हूँ। प्रणय गीत अब साथ कहूंगा, या दोस्त बन अब साथ चलूंगा। जो हो निर्णय अब तुम पर है, मेरा सब कुछ, तुम्हें समपर्ण है।
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