Pradeep
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वो ऐसे हमारे मुँह पर ताला रखते है, सुनसान, हाथों में, नोटों की गड्डी रखते है | ....................................... मुफलिसी मुँह चिढ़ाती है, मेरी खुद्दारी को तब, हम बाजार जाकर, दो रोटी खरीदते है | ....................................... ये उसूल, दीन-ओ-धरम, सब खोखले लगते है, जब दो दिन के भूखे बच्चे, गली में कूड़ा बिनते है | ....................................... पेट की हवस ने, क्या-क्या ना कराया हमें, क़ुरान-ऐ-पाक ने हराम कहा जिसे, हम वही काम करते है| .......................................
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