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वो मोड़ जो तेरी गली से शहर को मुड़ता है,

Pradeep
Pradeep
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वो मोड़ जो तेरी गली से शहर को मुड़ता है,
उस इकतरफा मोड़ पे,
बेजुबां, बदहवास सी,
इक रात, दो आँखें छोड़ आया था।
तुमसे मिलने की आखिरी कोशिश में,
मैं वो निशाँ छोड़ आया था।
.
कभी गुजरो वहाँ से
तो वो रात बुझा देना,
वो आँखें मूंद देना,
और कभी बौराया सा,
वो ख्वाब जला देना।

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