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अथ धर्मांतरण कथा

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धर्मांतरण के नाम पर पिछले पांच दिनों से जो हो हल्ला मचाया जा रहा है उसमें कुछ नेताओं के बयान आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। धर्मांतरण भारत की बहुत पुरानी समस्या रही है; इसका जितना इलाज किया गया है, इस समस्या ने उतना ही बुरा रूप धारण किया है। बलपूर्वक, प्रलोभन से या बहला फुसलाकर धर्मांतरण की घटनाएं होती रही हैं। मध्य काल में तलवार के ज़ोर से ऐसा किया गया तो अंग्रेजों ने अंधविश्वास और धन देकर धर्मांतरण कराया। यह भी सच है कि हिन्दू धर्म में हो रहे जातीय उत्पीड़न और भेदभाव के कारण भी बड़े पैमाने पर हिंदुओं ने दूसरे धर्मों की शरण ली। दलित और पिछड़े वर्ग के शोषित समाज ने आज़ादी से पूर्व इस प्रकार के धर्मांतरण में अपना तथा अपने परिवार का कल्याण माना। वे सही भी थे क्योंकि उस समय उनके खासकर ईसाई बन जाने पर उन्हें तत्कालीन सरकार से ढेरों सुविधाएं मिलने लगती थीं और उनके शरीर से चिपक निम्न जाति का ठप्पा भी हट जाता था लेकिन हिन्दू से मुस्लमान बनने के बाद भी उनकी जातीय उच्चता अथवा हीनता नष्ट नहीं होती थी। आज़ादी के बाद दलितों ने डॉ अंबेडकर के नेतृत्व में बौद्ध धर्म में जाने का एक दूसरा रास्ता अख्तियार किया जिसने उन्हें भेदभाव के दंश से आंशिक मुक्ति दी क्योंकि बौद्ध बनने के बाद भी वे हिन्दू ही कहलाते रहे।
वर्तमान समय में समस्या किंचित भिन्न है। आज विदेशी धन के बलबूते पर पूवोत्तर में क्रिश्चियन मिशनरियों द्वारा ईसाईकरण का खेल खेला जा रहा है तो उत्तर भारत तथा केरल एवम् तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों में बहला फुसलाकर अथवा प्रलोभन देकर मुसलमान बनाए जाने की साज़िशें रची जा रही हैं। ऐसे ही मिशनरी कार्यक्रमों की आड़ में ईसाईकरण का मिशन अंजाम दिया जा रहा है। आज ही यादव महासभा ने उत्तर प्रदेश के कुछ ईसाई बन चुके यादवों को पुनः हिन्दू बनाया है।
एक बात और ध्यान देने की है कि ईसाई धर्म लगभग 2000 साल पुराना है और मुस्लिम धर्म लगभग 1500 बरस पुराना है। इन धर्मों के सभी अनुयायियों के पूर्वज इन धर्मों से पहले भी रहे होंगे और उनका कोई न कोई धर्म भी अवश्य ही रहा होगा और वे अपना धर्म छोड़कर इन धर्मों में आये होंगे। जैसे मध्य एशिया में हिन्दू और बौद्ध धर्म तत्समय प्रचलित था। इसी प्रकार ग्रीको रोमन सभ्यता के भी अपने धर्म थे जो आज वहां लुप्तप्राय हो चुके हैं। ऐसे में अब घर वापसी की बात करना और एक निश्चित समय सीमा में भारत को हिन्दू राष्ट्र बना देने की कपोलकल्पना यथार्थ से कोसों दूर प्रतीत होती है। संघ के मित्रों को भी यह समझने की ज़रूरत है कि वे हिन्दू धर्म के जातीय ढांचे को ध्वस्त करने का प्रयास करेब जिससे अन्य धर्मावलम्बी हिन्दू धर्म की ऒर आकृष्ट हों। वे हिंदुओं के जबरन धर्मांतरण का विरोध करें और इस्लामी आतंकवाद का जो ज़हर भारत में फ़ैलाने की कुचेष्टा आइसिस के धर्मान्धों द्वारा की जा रही है उससे संघर्ष का पथ तलाशें। हमें ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे भारत की पहली पूर्ण बहुमत वाली गैर कांग्रेसी सरकार के सामने समस्याएं पैदा हों और मोदी जी के अच्छे कामों का यश उनकी कुहेलिका में कहीं ढँक जाए।

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