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कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं, जिन्हें देखने के बाद उनका प्रभाव कई दिनों तक मन मस्तिष्क में बना रहता है। मेरे लिए केतन मेहता की रंगरसिया (हिंदी नामकरण) या Colors of passion (English Version) एक ऐसी ही अद्भुत फ़िल्म है। मेरे मतानुसार मराठी उपन्यासकार रणजीत देसाई के जीवनीपरक उपन्यास राजा रवि वर्मा पर आधारित यह फ़िल्म वास्तव में इक्कीसवीं शती की सर्वश्रेष्ठ हिंदी फ़िल्म है। पता नहीं क्यों तथाकथित फ़िल्म समीक्षकों को इस फ़िल्म में खूबियां क्यों नज़र नहीं आईं! केवल सुभाष के झा ने उस समय इसे साल की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म कहा। यह फ़िल्म परदे पर उतारी गई एक बेशकीमती कलाकृति है। भारत में इस फ़िल्म को नवम्बर सन 2008 में ही प्रदर्शित होना था किन्तु इस फ़िल्म के कुछ अंतरंग दृश्यों पर उठे विवादों के कारण यह फ़िल्म 7 नवम्बर सन 2014 को प्रदर्शित हो सकी। आश्चर्य की बात है कि रागिनी एमएमएस और हेट स्टोरी जैसी बकवास फिल्मों को मंज़ूरी दे देने वाला सेंसर बोर्ड एक कलात्मक पेंटिंगनुमा फ़िल्म को स्वीकृति देने में पूरे छह साल लगा देता है। सन 2008 में लन्दन फ़िल्म फेस्टिवल में इसकी काफी सराहना हुई थी। राजा रवि वर्मा के किरदार को रणदीप हुडा ने अपने दमदार अभिनय से जीवंत कर दिया है। नंदना सेन ने सुगंधा बाई के किरदार में राज रवि वर्मा की पेंटिंग्स को सेल्युलाइड पर सफलतापूर्वक उकेरा है। फ़िल्म के सभी गाने और संगीत फ़िल्म की ज़रूरतों के अनुरूप हैं किन्तु जनता ने इन्हें क्यों नहीं स्वीकारा, ये समझ से परे है। शायद फ़िल्म का विषय आम जनता की अभिरुचि से दूर था या फिर यह भारतीय जनता में कलात्मक समझ के प्रति अनिच्छा को प्रदर्शित करता है। मुझे लगता है कि जब तक हम ऐसी उत्कृष्ट फिल्मों को देखने सिनेमाघरों में नहीं जाएंगे तब तक हम 100 करोड़ी बकवास फिल्मों को झेलने के लिए अभिशप्त रहेंगे आपका क्या ख्याल है !
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