मित्रों, 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर जापानी समयानुसार सुबह आठ बजकर पंद्रह मिनट पर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन के आदेश पर अमेरिकन बी 29 सुपर फोर्ट्रेस हवाई जहाज जिसे एनोला गे के नाम से भी जाना जाता है, से
परमाणु बम गिराया था। जापान के तत्कालीन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मानवता की इस सबसे बड़ी त्रासदी में 1,18,661 जानें गई थीं। लेकिन बाद में यह आंकड़ा बढ़कर 1,40,000 हो गया, जो पूरे नागासाकी की 3,50,000 की आबादी का एक बड़ा हिस्सा था। इस बम को लिटिल बॉय नाम दिया गया था, जिसमें 12000 से 15000 तन तक टी एन टी का इस्तेमाल हुआ था। इसके तीन दिन बाद नागासाकी पर फैट मैन नाम का बम गिराया गया था। मानवता की इस भीषण त्रासदी के प्रति अज्ञेय की कविता ‘हिरोशिमा’ के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि दें और यह प्रार्थना करें कि ऐसी भयावह त्रासदी मानवता के इतिहास में दोबारा न घटित हो –
एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक:
धूप बरसी
पर अंतरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से।
छायाएँ मानव-जन की
दिशाहिन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था वह पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के:
काल-सूर्य के रथ्ा के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गए हों
दसों दिशा में।
कुछ क्षण का वह उदय-अस्त!
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृष्य सोक लेने वाली एक दोपहरी।
फिर?
छायाएँ मानव-जन की
नहीं मिटीं लंबी हो-हो कर:
मानव ही सब भाप हो गए।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजरी सड़कों की गच पर।
मानव का रचा हुया सूरज
मानव को भाप बनाकर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है।
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