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यूँ तो पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने सन 1962 में चीन से युद्ध के समय तथा इंदिरा गांधी ने 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय भी आपातकाल लगाया था किन्तु इन दो आपातकालों की वैधता पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जाता क्योंकि उस समय आपातकाल लगाया जाना आवश्यक था क्योंकि देश बाहरी दुश्मन से युद्ध लड़ रहा था लेकिन 25-26 जून की मध्य रात्रि को तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे और अपने बिगड़ैल पुत्र संजय गांधी के कहने पर अपनी कुर्सी बचाने के लिए जो आपातकाल देशवासियों पर थोपा उसके लिए देश उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा। दरअसल यह आपातकाल इसलिए लगाया गया था क्योंकि इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्भीक और निष्पक्ष न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगमोहनलाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के विरुद्ध रायबरेली से चुनाव लड़े राजनारायण की याचिका पर फैसला देते हुए इंदिरा गांधी को चुनाव में हेराफेरी का दोषी पाया और उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी। इसके बाद उच्चतम न्यायालय में भी न्यायमूर्ति वी आर कृष्ण अय्यर ने इस सजा को बरकरार रखा। इंदिरा ने इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर की। इस बीच जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति के आह्वान पर समूचा देश उनके पीछे चल पड़ा था और पटना के गांधी मैदान से शुरू हुआ जनांदोलन सम्पूर्ण देश में फैलने लगा था। उच्चतम न्यायालय के फैसले और जनाक्रोश के बीच इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने देश की जनता को चुप कराने के लिए यह जघन्य अपराध किया जिसका समर्थन विनोबा भावे, मदर टेरेसा, खुशवंत सिंह, एम् जी रामचंद्रन, भीष्म साहनी, बाल ठाकरे, विद्याचरण शुक्ल, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया जैसों ने किया जबकि मोरारजी देसाई, अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जार्ज फर्नान्डीज़, मधु दंडवते, चरण सिंह, इंद्रकुमार गुजराल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जमाते इस्लामी आदि ने इसका विरोध किया।
25 जून 1975 की मध्य रात्रि से शुरू होकर 21 मार्च 1977 तक चला यह आपातकाल जनता, विधायिका, प्रेस, न्यायपालिका, कार्यपालिका सभी को पंगु बनाने के लिए याद किया जाएगा। इसने देश में नेताओं की गणेश परिक्रमा की संस्कृति को जन्म दिया जिसके दुष्प्रभाव आज तक हम भोग रहे हैं। दुर्भाग्य की बात है कि उस समय जिन लोगों ने आपातकाल का विरोध किया था वही लोग आज आपातकाल के दुर्गुणों को ख़ुशी ख़ुशी ओढ़ रहे हैं जो देश में लोकतन्त्र के भविष्य के लिए शुभ लक्षण नहीं है।
मुझे लगता है कि इंदिरा गांधी से इस कृत्य के कारण भारत रत्न वापस लिया जाना चाहिए।
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