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ब्रेख्त को याद करते हुए

http://puneetbisaria.wordpress.com/
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आज बर्तोल्त ब्रेख्त की116 वीं जयंती है। नाटककार, कथाकार,. उपन्यासकार फ़िल्म निर्देशक और कवि के तौर पर विख्यात ब्रेख्त अपने मार्क्सवादी रुझान और भारत तथा चीन से निकटता हेतु जाने जाते हैं। जर्मनी के बावेरिया में जन्मे ब्रेख्त तानाशाह हिटलर की हिटलिस्ट में रहे और उन्हें उसके कोप के कारण दस से अधिक वर्षों तक देशनिकाला के दंश को सहन करना पड़ा। अपने नाटकों के माध्यम से उन्होंने एपिक और एलियनेशन के सिद्धांत देकर रंगमंच को यूरोपीय यथार्थवाद की एकरसता से मुक्ति दिलाई। हबीब तनवीर ब्रेख्त से प्रभावित शुरुआती लोगों मे थे . हबीब तनवीर अपने युरोप प्रवास के दौरान ब्रेख्त से मिलने के लिये जर्मनी गये परन्तु  वहां उनके पहुंचने से पूर्व ही ब्रेख्त की मृत्यु हो गई. हबीब तनवीर ने बर्लिन एन्सेंबल की रंग प्रस्तुतियों को देखा और ब्रेख्त के सिद्धांतो को सीखा. हबीब तनवीर ने ब्रेख्त के नाटक ‘गुड वुमेन आफ़ सेत्जुआन का ‘शाजापूर की शांतिबाई’ के नाम से मंचन भी किया. उनके रंगकर्म को ब्रेख्त ने प्रभावित किया है हबीब ब्रेख्त को गुरु की मान्यता देतेथे।  संगीत, कोरस, सादा रंगमंच, महाकाव्यात्मक विधान ये सब कुछ ऐसी विशेषतायें हैं जो ब्रेख्त और भारतीय परंपरा दोनों में ही देखी जा सकती हैं,  जिसे हबीब तनवीर और भारत के अन्य रंगकर्मियों ने आत्मसात किया.
भारत में साठ और सत्तर के दशक में ब्रेख्त भारतीय रंगमंच के केन्द्र में आ गए थे।  इसी दौरान जड़ों के रंगमंच का नारा बुलंद हुआ था और आधुनिक भारतीय रंगमंच पर भारतीय लोक परंपरा के रंग प्रयोग किये जाने लगे थे. यह प्रयोग नाट्य लेखन और मंचन दोनों क्षेत्र में हो रहा था। गिरीश कर्नाड ने भी अपने लेखन पर ब्रेख्त के प्रभाव को स्वीकार किया है.  गिरिश कर्नाड के हयवदन, विजय तेंदुलकर के घासीराम कोतवाल, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के बकरी आदि नाटकों पर ब्रेख्त का प्रभाव देखा जा सकता है। उनके महत्त्वपूर्ण नाटकों में लाइफ ऑफ़ गैलीलियो, रेसिसिस्टिबिल राइज़ ऑफ़ अर्तुरो उई, थ्री पैनी ओपेरा, गुड वूमन ऑफ़ सेत्जुआन, मदर करेज, काकेशियन चाक सर्किल प्रमुख हैं। उनके साहित्यिक अवदान का प्रभाव समकालीन हिंदी लेखन पर भी देखा जा सकता है। 14 अगस्त सन 1956 को उनका निस्वां हो गया। उनकी कुछ कविताएं हिंदी स्वरुप में हलंत http://meribatiyan.blogspot.in/2013/05/blog-post.html के सौजन्य से पेश हैं –
ग्रैबश्रिफ्त या समाधिलेख (1919 )*
वह लाल गुलाब लापता है अब तक
कोई नहीं जानता कहाँ होगी वह देह
जब वह ग़रीबों को बता रही थी सच
अमीरों ने खदेड़ा उसे दुनिया से।
*Grabschrift नाम की यह कविता संभवतः रोज़ा लुक्ज़म्बुर्ग के लिए लिखी गई थी। १९१९ उनकी ह्त्या का वर्ष था। इस कविता का दूसरा कोई सन्दर्भ समझ में नहीं आया।
टूटी रस्सी
टूटी रस्सी को जोड़ा जा सकता है
एक गाँठ से
जुड़ तो जाएगी
लेकिन रह जाएगी जीर्ण ही
हो सकता है हम मिलें
एक बार फिर
मगर वहाँ
जहाँ तुम मुझे छोड़कर चली गईं थीं
नहीं मिलोगी वहीँ दोबारा।
धुआं
ताल किनारे
पेड़ों के झुरमुट के नीचे
छोटा सा घर
छत से तिरता धुआं
कितने सूने लगते
घर, पेड़ और ताल
उसके बिना।

समूचे विश्व को अपनी साहित्यिक दृष्टि से अचंभित करने वाले बर्तोल्त ब्रेख्त की आज 116 वीं जयंती है। नाटककार, कथाकार,. उपन्यासकार फ़िल्म निर्देशक और कवि के तौर पर विख्यात ब्रेख्त अपने मार्क्सवादी रुझान और भारत तथा चीन से निकटता हेतु जाने जाते हैं। जर्मनी के बावेरिया में जन्मे ब्रेख्त तानाशाह हिटलर की हिटलिस्ट में रहे और उन्हें उसके कोप के कारण दस से अधिक वर्षों तक देशनिकाला के दंश को सहन करना पड़ा। अपने नाटकों के माध्यम से उन्होंने एपिक और एलियनेशन के सिद्धांत देकर रंगमंच को यूरोपीय यथार्थवाद की एकरसता से मुक्ति दिलाई। हबीब तनवीर ब्रेख्त से प्रभावित शुरुआती लोगों मे थे . हबीब तनवीर अपने युरोप प्रवास के दौरान ब्रेख्त से मिलने के लिये जर्मनी गये परन्तु  वहां उनके पहुंचने से पूर्व ही ब्रेख्त की मृत्यु हो गई. हबीब तनवीर ने बर्लिन एन्सेंबल की रंग प्रस्तुतियों को देखा और ब्रेख्त के सिद्धांतो को सीखा. हबीब तनवीर ने ब्रेख्त के नाटक ‘गुड वुमेन आफ़ सेत्जुआन का ‘शाजापूर की शांतिबाई’ के नाम से मंचन भी किया. उनके रंगकर्म को ब्रेख्त ने प्रभावित किया है हबीब ब्रेख्त को गुरु की मान्यता देतेथे।  संगीत, कोरस, सादा रंगमंच, महाकाव्यात्मक विधान ये सब कुछ ऐसी विशेषतायें हैं जो ब्रेख्त और भारतीय परंपरा दोनों में ही देखी जा सकती हैं,  जिसे हबीब तनवीर और भारत के अन्य रंगकर्मियों ने आत्मसात किया.

भारत में साठ और सत्तर के दशक में ब्रेख्त भारतीय रंगमंच के केन्द्र में आ गए थे।  इसी दौरान जड़ों के रंगमंच का नारा बुलंद हुआ था और आधुनिक भारतीय रंगमंच पर भारतीय लोक परंपरा के रंग प्रयोग किये जाने लगे थे. यह प्रयोग नाट्य लेखन और मंचन दोनों क्षेत्र में हो रहा था। गिरीश कर्नाड ने भी अपने लेखन पर ब्रेख्त के प्रभाव को स्वीकार किया है.  गिरिश कर्नाड के हयवदन, विजय तेंदुलकर के घासीराम कोतवाल, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के बकरी आदि नाटकों पर ब्रेख्त का प्रभाव देखा जा सकता है। उनके महत्त्वपूर्ण नाटकों में लाइफ ऑफ़ गैलीलियो, रेसिसिस्टिबिल राइज़ ऑफ़ अर्तुरो उई, थ्री पैनी ओपेरा, गुड वूमन ऑफ़ सेत्जुआन, मदर करेज, काकेशियन चाक सर्किल प्रमुख हैं। उनके साहित्यिक अवदान का प्रभाव समकालीन हिंदी लेखन पर भी देखा जा सकता है। 14 अगस्त सन 1956 को उनका निस्वां हो गया। उनकी कुछ कविताएं हिंदी स्वरुप में हलंत http://meribatiyan.blogspot.in/2013/05/blog-post.html के सौजन्य से पेश हैं –

ग्रैबश्रिफ्त या समाधिलेख (1919 )*

वह लाल गुलाब लापता है अब तक

कोई नहीं जानता कहाँ होगी वह देह

जब वह ग़रीबों को बता रही थी सच

अमीरों ने खदेड़ा उसे दुनिया से।

*Grabschrift नाम की यह कविता संभवतः रोज़ा लुक्ज़म्बुर्ग के लिए लिखी गई थी। १९१९ उनकी ह्त्या का वर्ष था। इस कविता का दूसरा कोई सन्दर्भ समझ में नहीं आया।

टूटी रस्सी

टूटी रस्सी को जोड़ा जा सकता है

एक गाँठ से

जुड़ तो जाएगी

लेकिन रह जाएगी जीर्ण ही

हो सकता है हम मिलें

एक बार फिर

मगर वहाँ

जहाँ तुम मुझे छोड़कर चली गईं थीं

नहीं मिलोगी वहीँ दोबारा।

धुआं

ताल किनारे

पेड़ों के झुरमुट के नीचे

छोटा सा घर

छत से तिरता धुआं

कितने सूने लगते

घर, पेड़ और ताल

उसके बिना।

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