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रेस 2 को देखने के बाद मेरे मन में एक विचार यह आ रहा है कि अब्बास मस्तान कब तक स्किन शो एवं तेज रफतार हाई फाई सोसाइटी दिखाकर एक ही पैटर्न की फिल्मों से जनता को बेवकूफ बनाते रहेंगे? द्विअर्थी डायलॉग, बेवकूफाना हरकतें तथा पहले से समझ में आ जाने वाली स्टोरी दिखाकर मक्कारी, फरेब और स्वार्थ का जो मायाजाल इस फिल्म में रचा गया है, वह धूर्तता की पराकाष्ठा को पार करता हुआ अविश्वसनीय हो जाता है। ऐसी फिल्में जब हिट की श्रेणी में आ जाती हैं तो आश्चर्य होता है कि जनता भला अविश्वसनीय एवं बेसिरपैर की स्टोरीलाइन को कैसे सुपरहिट बना सकती है? जहां तक अभिनय का प्रश्न है तो सिर्फ अनिल कपूर ही स्वाभाविक अभिनय करते दिखाई देते हैं, सैफ अली खान और जॉन अब्राहम ने निराश किया है, बाकी दीपिका पादुकोण, जैकलीन और अमीषा पटेल का इस्तेमाल सिर्फ ग्लैमर डॉल के तौर पर किया गया है। गीत संगीत की दृष्टि से भी यह फिल्म पूर्ववर्ती फिल्म से कमतर है। मेरी रेटिंग है 2.5 स्टार।
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