18 फ़रवरी को हिंदी की प्रख्यात लेखिका कृष्णा सोबती ने जीवन के 88 वर्ष पूर्ण कर लिए। कृष्णा जी स्त्री की मनः स्थितियों के मनोवैज्ञानिक अंकन के लिए विख्यात हैं। ऐ लड़की,मित्रो मरजानी, डार से बिछुड़ी, जिंदगीनामा, जैनी मेहरबान सिंह, तिन पहाड़, दिलो दानिश, समय सरगम, सूरजमुखी अँधेरे के, यारों के यार जैसे स्त्री व्यथा की परतें खोलने उपन्यासों तथा सिक्का बदल गया, दादी अम्मा, मेरी माँ कहाँ , बादलों के घेरे आदि जैसी कहानियों की रचनाकार कृष्णा जी ने हम हशमत एवं सोबती एक सोहबत नाम से संस्मरण भी लिखे हैं। आपको सन 1998 में साहित्य अकादमी सम्मान मिल चुका है। इसके अतिरिक्त आप साहित्य शिरोमणि सम्मान, शलाका सम्मान, मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार, साहित्य कला परिषद पुरस्कार, कथा चूड़ामणि पुरस्कार आदि से भी विभूषित हो चुकी हैं। आप साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्य हैं। डॉ. रामप्रसाद मिश्र ने कृष्णा सोबती की चर्चा करते हुए दो टूक शब्दों में लिखा है: उनके ‘ज़िन्दगीनामा’ जैसे उपन्यास और ‘मित्रो मरजानी’ जैसे कहानी संग्रहों में मांसलता को भारी उभार दिया गया है। बादलों के घेरे’, ‘डार से बिछुड़ी’, ‘तीन पहाड़’ एवं ‘मित्रो मरजानी’ कहानी संग्रहों में कृष्णा सोबती ने नारी को अश्लीलता की कुंठित राष्ट्र को अभिभूत कर सकने में सक्षम अपसंस्कृति के बल-संबल के साथ ऐसा उभारा है कि साधारण पाठक हतप्रभ तक हो सकता है। ‘सिक्का बदल गया’, ‘बदली बरस गई’ जैसी कहानियाँ भी तेज़ी-तुर्शी में पीछे नहीं हैं।। नामवर सिंह ने कृष्णा सोबती के उपन्यास ‘डार से बिछुड़ी’ और ‘मित्रो मरजानी’ का उल्लेख किया है और सोबती को उन उपन्यासकारों की पंक्ति में गिनाया है, जिनकी रचनाओं में कहीं वैयक्तिक तो कहीं पारिवारिक-सामाजिक विषमताओं का प्रखर विरोध मिलता है। ऐसे समीक्षकों की भी कमी नहीं है, जिन्होंने ‘ज़िन्दगीनामा’ की पर्याप्त प्रशंसा की है। डॉ. देवराज उपाध्याय के अनुसार-‘यदि किसी को पंजाब प्रदेश की संस्कृति, रहन-सहन, चाल-ढाल, रीति-रिवाज की जानकारी प्राप्त करनी हो, इतिहास की बात’ जाननी हो, वहाँ की दन्त कथाओं, प्रचलित लोकोक्तियों तथा 18वीं, 19वीं शताब्दी की प्रवृत्तियों से अवगत होने की इच्छा हो, तो ‘ज़िन्दगीनामा’ से अन्यत्र जाने की ज़रूरत नहीं। हम इस महान कथा लेखिका के दीर्घायु होने की कामना करते हैं।
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