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हरिऔध का साहित्यिक अवदान

http://puneetbisaria.wordpress.com/
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आज खड़ी बोली की कविता के प्रारम्भिक उन्नायकों में से एक अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की 56 वीं पुण्य तिथि है। आज ही के दिन 16 मार्च सन 1947 को हरिऔध ने हमसे विदा ले ली।  हिंदी आपने हिंदी खड़ी बोली को ‘प्रियप्रवास’ के रूप में पहला तत्समनिष्ठ महाकाव्य दिया और ‘चोखे चौपदे’, तथा ‘चुभते चौपदे’ के माध्यम से उर्दू को भी खड़ी बोली में  किया। कशी हिन्दू विश्वविद्यालय के अवैतनिक हिंदी अध्यापक के रूप में उन्होंने कबीर रचनावली का सम्पादन करते हुए एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सिद्यार्थियों और शिक्षकों हेतु प्रस्तुत किया।श्री सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के शब्दों में हरिऔध जी का महत्त्व और अधिक स्पष्ट हो जाता है- इनकी यह एक सबसे बड़ी विशेषता है कि ये हिन्दी के सार्वभौम कवि हैं। खड़ी बोली, उर्दू के मुहावरे, ब्रजभाषा, कठिन-सरल सब प्रकार की कविता की रचना कर सकते हैं। प्रस्तुत है एक बूंद नामक उनकी एक प्रसिद्ध कविता जो मैंने बाल्यकाल में पढ़ी थी——–


एक बूँद

ज्यों निकल कर बादलों की गोद से।
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी।।
सोचने फिर फिर यही जी में लगी।
आह क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी।।

दैव मेरे भाग्य में क्या है बढ़ा।
में बचूँगी या मिलूँगी धूल में।।
या जलूँगी गिर अंगारे पर किसी।
चू पडूँगी या कमल के फूल में।।

बह गयी उस काल एक ऐसी हवा।
वह समुन्दर ओर आई अनमनी।।
एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला।
वह उसी में जा पड़ी मोती बनी।।

लोग यों ही है झिझकते, सोचते।
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर।।
किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें।
बूँद लौं कुछ और ही देता है कर।।

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