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प्रीत पगी पाती ( वैलेंटाइन कांटेस्ट)

general dibba
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प्रीत पगी पाती ( वैलेंटाइन कांटेस्ट)

जब-जब विश्वास मेरा मर मिटने की सीमा तक आया है

एक तुम्हारे ही साये का संबल मैंने पाया है|

दूर संदेशों से ही तुमने नेह बीज मन मे है बोया

धुंधली सी यादों ने तुम्हारी, मेरा तन –मन खोया

नेह तुम्हारा इतना मुखरित जितनी सागर की गहराई

जैसे किसलय पर जागी हो शबनम लेकर अंगड़ाई

नीले अंबर के उस पार

उड़ता पंछी पंख पखार

मेरे इस मन पंखी को प्यार तुम्हारा भाया है

जब –जब विश्वास —–

एक तुम्हारा नेह सहारा, इतना प्यारा, बाकी सब है झूठा

तुम रूठी गर मुझे लगेगा मुझसे मेरा साया रूठा

उतर व्योम से ठिठक गया जो ज्योति पुंज सा तारा

उस तारे को भरे विश्व में भाया एक तुम्हारा साया

मेरा नेह भरा समरपन

और तुम्हारा शुचि मन-दर्पण

भूल गया मन दर्द पुराने जब से तुमने अपनाया है

जब-जब विश्वास मेरा —–

ताने जब जग से मिलते हैं याद तुम्हें कर लेती हूं

मेरा नेही सच्चा है ये सोच के विष पी लेती हूं

प्रणय -पंथ में साथी मेरे अब तो पांव हुये छलनी है

प्रियतम मेरे आज बता दो कितनी राह और चलनी है|

कभी तो मन समझा लेती हूं

कभी सोच यह रो लेती हूं

जगत भंवर मेँ फंसकर प्रियतम तुमने मुझको बिसराया है

जब-जब विश्वास ——

पाकर पाती आज तुम्हारी कसक उठी है पीड़ा मेरी

मुखरित चाहत की वीथी मेँ कंपित रोती क्रीडा मेरी

तुमने ऐसा लिखा कि जिसको सह ना सकीं हैं आंखें मेरी

रोते-रोते यही कहूंगा प्रेयसी तुम हो केवल मेरी

अब न कभी तुम मुझे रुलाना

प्रीत-पगी पाती भिजवाना

हुआ प्रवासी इसका मतलब मैंने तुमको बिसराया है

जब—जब विश्वास मेरा ——–

कहनी-अनकहनी जग के झूठे लोग कहेंगें

लेकिन प्रणय-पंथ मेँ प्रेयसी विष के भी हम घूंट पीयेंगे

मैंने अपनी सारी खुशियां तुमको कर दीं अर्पित

तुम भी अपनी मुसकानों से करना मेरा जग रुपायित

दर्द भरे इस प्रीत नगर मेँ

हर पन्ने के हर आखर पर

रटते-रटते नाम नेह का मैंने जग को बिसराया है

जब-जब विश्वास मेरा—–

तुम न उदास क्षण भर को होना ये तो कोमल रिश्ता है

दर्द को दिल दे अपना लो तब ये अपना हो सकता है

आंखों मेँ हों अश्रु तुम्हारे मैं कैसे सह सकता हूं

इंगित तुमको करे ज़माना मै कैसे सह सकता हूं?

दो दिल मिले हंसे मुसकायें

सुख-सागर दिल मेँ लहराये

भरे विश्व मेँ इसी मिलन को कोई कब सह पाया है

जब-जब विश्वास—

punita singh

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