merikavitamerevichar
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सोने के पिंजड़े में कैद बुलबुल कहें
या फिर रंगीन जोड़े में लिपटी गुड़िया
पैरों में तुम्हारे पायल हैं …………..
या हैं तुम्हारी ख्वाइशों की बेड़ियां
ऊपर से तो हंसती दिखती हो
पर कुछ कुछ सहमी सी रहती हो
ऊपर से नीचे तक गहनों से लदी तुम
तो सोने के पिंजड़े की कैदी लगती हो
क्यों सबकुछ अकेले सहती हो
क्यों ना तुम अपनों से कुछ कहती हो
समाज के इन मुजरिमों का यूँ चुप रहकर
हरपल साथ क्यों तुम देती हो………….
क्यों ऐसा लगता है कि तुम्हारी आंखे
कुछ कहना चाहती हैं…………………….
सर रख कर रोने को कोई कांधा चाहती हैं
क्यों शादी के बाद इतनी मजबूर होती बेटियां
क्यों पैरों की पायल बन जाती है इनकी बेड़ियां
पूनम गुप्ता “पूर्णिमा”
देहरादून उत्तराखंड
स्वरचित
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।
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