मेरा मन !
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शहर क्यों शमशान सा है, हर शख्श यहां अनजान सा है।
सड़कों पर फैला है सन्नाटा,गलियां सब सुनसान सी है!।
पूछा जब मैंने किसी से,बैठा हुआ था एक कोने में छिपके।
लग रहा था भूखा प्यासा जैसे लौटा हो मातम मन कर!
बोला वो बहुत दुखी मन से, देखो मेरा हिंदुस्तान ये है।
सहमी हुई हर जिंदगी है, ठहरी हुई यहाँ हर घड़ी है।
चाँद पर से लौटकर भी, जाती धर्म मे बिखरी पड़ी है।
लोकतंत्र के पर अब यहाँ ,बस होती केवल नॉटंकी है।
चोरो की एक पूरी पलटन,संग लूटेरों की फौज बड़ी है।
नेताओं के नाम पर तो बस हैवानो की कौम बची है।
जनता तो बस चुनावों में वोट डालने की मशीन बनी है।
अनुकम्पा और अनुदानों की जिसे आदत लगी हुई है।
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