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बचपन!!

मेरा मन !
मेरा मन !
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ये कैसी बचपन की दसा दिशा,
ये कैसी पेट की व्याकुलता!
कहाँ वो बचपन के मधुर गीत,
कहाँ वो बचपन की मोहकता!!
क्यों निगल गयी सबकुछ
निर्दयी पेट की ये ज्वाला!
आखो से क्यों आस गयी
क्यों गयी ह्रदय की कोमलता!!
क्यों इन बसंत की नव कोपल पर
फैली पतझर की व्याकुलता!
किसका है ये दोष कहो
है किसकी ये निर्दयता!!
किस कारण से इन्हे मिली
यह जीवन जीने की सजा!
किस कारण से हुई इनके
जीवन की ये दुर्दशा!!
चंद सिक्को ने लील लिया
निर्दोष ह्रदय की कोमलता!
बचपन की मुस्कान गयी
गयी जीवन की सार्थकता!!

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