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बीमारी इकहत्तर बरस की हुई
देश को सत्तर सालों से बीमार बताकर देशवासियों को कड़वी दवाईयां खूब खिलायीं गयीं और देश की पुरातन सनातन इलाज पद्धति को पुनः स्थापित करने के लिये योग एवं आयुष मंत्रालय भी बना लेकिन मंत्रियों का इलाज एलोपैथिक अस्तपतालों में ही हुआ /चीफ सर्जन ने गाँधी के सपनों को साकार करने का संकल्प लिया और प्राथमिकता में केवल पाखाने रहे और महंतजी की प्राथमिकता केवल अपने नेताजी के सपनों को साकार करने में और लेकिन बेचारी जनता का सपना ?मुट्ठीभर लोगों ने काम नहीं करने दिया तो बड़े लोग उपवास रखेंगे लेकिन जब खुद ने ही पचास दिन पूरा देश ठप्प रखा तो कोई उपवास नहीं ?भुखमरी और कुपोषण से न जाने कितने लोग रोजाना भारत में मरते हैं पर बेचारे कह भी नहीं पाते कि वे जबरन उपवास पर हैं लेकिन जनता के दिये टैक्स पर पलते पोसते बड़े लोग जब उपवास करें तो खबर बन जाती है /अनाज भण्डारण गोदामों की कमी और अनाज को भीगने से बचाने की नाकामी पर पुराने डाक्टरों पर बहुत तंज कसे गये परंतु डाक्टर बदलने पर भी बीमारी अब इकत्तहर बरस की हो गयी?पहले मैनेजमेंट में चीफ सर्जन राज्यसभा से और मेडिकल ऑफिसर अधिकांश लोकसभा से थे और मैनजेमेंट बदला तो चीफ लोकसभा से और मेडिकल ऑफिसर राज्यसभा से अधिक नियुक्त हुए / नोट बदले,कानून बदले,आयोग भी बदले लेकिन बीमारी है कि ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही क्योंकि अगर रोग ठीक हो गया तो डाक्टरों की दुकानदारी भी तो बंद हो जायेगी /मरीज की किस्मत में जाँच और डाक्टर की रेफेरल सिस्टम में रूचि लेकिन रोग भोग तो भाई पूर्व जन्मों के प्रारब्ध का खेल है,भोगना ही पड़ता है !!
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