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सुबह से लेकर रात तक,या स्पष्ट ही कहें कि जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति हर पल समस्याओं में घिरा रहता है /अक्सर एक साथ कई समस्याएं आ खड़ी होती हैं,जिनका समाधान क्रमवार या फिर उनकी प्राथमिकता के आधार पर निबटा जाता है / परन्तु समस्याएं हैं कि ख़त्म होने का नाम ही नही लेतीं/ आदमी कहता है कि मरने तक की फुर्सत नही पर मरता तब भी नही ! प्रश्न यही है कि आखिर इन समस्याओं को व्यक्ति सुलझाता क्यों है ? आप चाहे व्यापारी हों,कामकाजी नौकरीशुदा हों,प्राईवेट कर्मचारी हों,सरकारी कर्मचारी हों,गृहणी हों,परिवार का मुखिया हों,बूढ़े हों,जवान हों,छात्र हों या ठल्वे ही क्यों ना हों ?सब के सब परेशान हैं,अब यह परेशानी स्वयं की उपजी हुई हो या थोपी हुई हो या गले पड़ गयी हो या रोग के कारण हो,समाधान तो ढ़ूढ़ना ही पड़ता है/ अच्छे खासे बैठे थे,रविवार का दिन था ,मौसम बारिश से सुहावना था ,पकौड़ी खाने का मन था ,सब सामान तैयार था अचानक गैस लीक होने लगी ,अब पकौड़ी आदि सब भूल गये और ढ़ूँढ़ने गये मिस्त्री को,बारिश में जैसे तैसे मिस्त्री मिला उसकी मन चाही फीस देकर अपनी गैस सही करवाई तब तक धूप निकल आई और इधर लाइट भी चली गयी,और रविवार का सारा बजट गैस ठीक कराने में निकल गया और अपना मूड चौपट साथ में बच्चों का भी चौपट/ अक्सर ऐसा होता है कि जब कभी आपको किसी ख़ास काम की वजह से या पिकनिक ही बनाने हेतु कहीं बाहर जाना होता है घर में ठीक उसी वक़्त कोई ना कोई मेहमान आ टपकता है,वह आपका सारा प्रोग्राम चौपट कराकर ही दम लेता है/ या यूँ समझ लें,घर से निकलते ही वाहन खराब !! खैर यह रविवार बीता तो सोमवार से शनिवार तह फिर माथा पच्ची / जहाँ देखो षड्यंत्र ही षड्यंत्र है,कैसे अपनी जान बचायें.कैसे जिन्दा रहें यही बस एक सबसे बड़ी समस्या है,तो बस भैय्याजी ! जिन्दा बने रहना और जिन्दा बने रहने का प्रयास ही जीवन है और जिस दिन यह प्रयास समाप्त बस उसी दिन जीवन ख़त्म/ बच्चा पैदा हुआ कि उसके टीकाकरण की समस्या,फिर उसके नर्सरी केजी कक्षा में प्रवेश की समस्या,फिर अच्छे स्कूल में प्राथमिक शिक्षा की समस्या ,फिर माध्यमिक स्तर की पढ़ाई की समस्या,फिर प्रोफेशनल लाईन या करियर की समस्या,यदि बच्चा कन्या है तो उसके सुरक्षित रखने की समस्या ,फिर रोजगार तलाशने की समस्या,फिर रोजगार को बचाये रखने की समस्या ,फिर विवाह की समस्या,पारिवारिक जीवन सफल रखने की समस्या.मातापिता की अपेक्षाओं को पूरा करने की समस्या,फिर रोग एवं उसके उपचार की समस्या और फिर बुढ़ापे में अपनी औलाद से तिरस्कार की समस्या,फिर जीवन साथी के बिछुड़ने की समस्या और जब स्वयं मर गये तो औलाद के सामने लाश के अंतिम संस्कार की समस्या !! कभी कभी मन में आता है कि किसी ज्योतिषी से ही पूछले कि हमारी समस्याओं का कोई अन्त है कि नही,थोड़ी देर ज्योतिषी के यहाँ बैठने पर पता लगा कि ज्योतिषी को खुद ही कुछ दिन पहले हार्ट अटेक हुआ था,वह खुद ही उसकी दवा खा रहा था और डाक्टर से पूछ रहा था कि क्या मैं इस रोग से मरूँगा तो नही? सब सफ़ेद कुर्ताधारी अपराधी भारत का प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं सामदाम दंड भेद येन केन प्रकारेण प्रयासरत भी रहते हैं परन्तु कभी कभी कुर्सी उसको मिल जाती है जो उसका उम्मीदवार भी नही होता,सारे सफ़ेद कफन्धारियों के प्रयास पर कुठाराघात / अब यही कहना पड़ेगा कि समस्या और जीवन एक ही सिक्के के दो पहलु हैं या एक दूसरे के पूरक हैं या फिर एक दूसरे के विकल्प हैं/इन्ही प्रश्नों का उत्तर और समाधान जीवन है या स्पष्ट ही कहें कि समस्या की उत्पत्ति एवं उसका निदान जीवन है और अधिक स्पष्ट शब्दों में कहें के अपने पूर्व जन्मों के कर्मफलों को भोगना और नये कर्मों का करना ही जीवन है/और आध्यात्मिक परिवेश में कहें तो गूढ़ बात यही है कि जब तक भोग समाप्त नही होंगे तब तक जीवन है और भोग काटने के लिये चौरासी लाख योनियाँ हैं जिनमे नाना प्रकार के शरीर हैं जिनकी प्राप्ति पूर्व जन्मों के कर्मफल अनुसार होती है और जिस भी पल भोग समाप्त बस जीवन ख़त्म और उसके बाद सदा को आनंद .और यही आनंद ईश्वर प्राप्ति है अतः मतलब की बात यही है कि जीवन का अंतिम पडाव ईश्वर प्राप्ति ही है जो जल्दी कर लेता है वह सफल है और जो नही करपाता उसके भाग्य में समस्यायें ही समस्यायें हैं/ अन्त में “होही है वही जो राम रची रखा”…….
रचना रस्तोगी
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