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थाली तो अनेक लेकिन चट्टे बट्टे एक

bharat
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थाली तो अनेक लेकिन चट्टे बट्टे एक
सत्तर साल पहले कहावत थी कि सब “एक ही थाली के चट्टे बट्टे” हैं यानि यहाँ थाली तो एक है लेकिन चट्टे बट्टे अनेक हैं चूंकि अब देश बदल गया है तो अर्थ बदलना भी स्वभाविक प्रक्रिया है यानि अब “थाली अनेक” पर “चट्टे बट्टे एक” ?थाली तो प्लेट में बदल चुकी है और व्यंजन मीनू में ?पेट्रोल आज लगभग 75 रूपया लीटर है और मोटर साईकिल कीमत भी एक लाख के आस पास है और मोटर साइकिल रखने वाला गरीब तो हो नहीं सकता और सौ रुपए का पैट्रॉल डलवाना सामान्य बात है और अगर एक लाख लोग एक साथ सौ सौ रुपए का पैट्रॉल डलवाकर सड़क पर फुंकार भरें तो एक करोड़ रुपया बर्बादी होती है ,जिस पर एनजीटी को कोई आपत्ति नहीं और एक लाख लोगों में कुछ विशेष सरकारी दामाद हों तो उनकी सुरक्षा में तैनात सुरक्षा कर्मियों को भी सड़क पर दौड़ना होगा जिसकी कीमत उन लोगों को भरनी है जो बेचारे फुंकार तो नहीं भर रहे थे पर फुंकार झेल रहे थे यानि भारतीय करदाता ?खैर ! बात फुंकार की जो ठहरी /अस्तु ! 2018 के परिपेक्ष्य में कोई पच्चीस वर्ष का युवा अपनी व्यथा व्यक्त करे या अपने जीवनयापन आजीविका संबंधित प्रश्न करे तो जबाब कि सत्तर सालों से चुप क्यों थे ?तब क्या सो रहे थे ?क्या पहली बार ही फुंकारें भरी गयी हैं ?वासुकी नाग ने अमुक वर्ष में फुंकार भरी थी और तक्षक नाग ने पांच हजार वर्ष पहले फुंकार भरी थी और इस फुंकार पर सवाल क्यों ? अब पच्चीस वर्षीय युवक सोचने को विवश कि कोई भी प्रश्न पूछने से पहले उसको अपने जन्म से पैंतीस साल पहले का भी इतिहास पढ़ना रटना जरुरी है क्योंकि देश सत्तर साल पहले आजाद हुआ था /रोजमर्रा की ख़बरों में बैंक बचतखातों से रूपया गायब होने की बात अब सामान्य है और खातेदार शिकायत किससे करे और कर भी दे तो भी बेचारे को मायूस ही रहना है क्योंकि वह सत्तर सालों से चुप क्यों था ?पहले बेईमानी की कीमत चुकानी थी और अब ईमानदारी की !! एक ख़ामोशी ने साढ़े ग्यारह हजार करोड़ नगद निगल लिये और बदले में पांच हजार रुपया के हीरे जवाहरात बेच दिये और सरकारी तंत्र केवल खरीद बेच का माध्यम बना यानि सौदा कितना बढ़िया रहा ?चार दिन पहले महाराष्ट्र में ओलावृष्टि से किसानों की करोड़ों रुपियों फसल बर्बाद हो गयी और उधर एक करोड़ रुपया का पेट्रोल फुंकार यज्ञ आहुति में फुंका ! थाली और चट्टे बट्टों में उलझा शिक्षित युवा चाय पकौड़ों में अपना भाग्य तलाशने को मजबूर और अनपढ़ मजदूर पांच सौ रुपया की ड्याढ़ी पर हुंकार फुंकार परिवर्तन रैलियों में कभी लाल तो कभी नीली तो कभी हरी तो कभी सफ़ेद तो कभी भगवा टोपी बारी बारी से बदल कर अपनी किस्मत संवारता रोजाना किसी रैली के इंतजार में रैलियों के ठेकेदार की चौखट पर मत्था टेककर सूर्य नमस्कार करता है /बात फिर वही कि तय करना मुश्किल कि “थाली अनेक और चट्टे बट्टे एक ” कहें या “थाली एक और चट्टे बट्टे अनेक” कहें !!!

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