Menu
blogid : 4811 postid : 1388499

‘पद’ जाति धर्म से बंधा नहीं

bharat
bharat
  • 178 Posts
  • 240 Comments

एसिडिटी की दवा लिखे बगैर किसी भी डॉक्टर का पर्चा पूरा नहीं होता है। एसिडिटी ख़त्म करने की दवा फेमोटिडीन (40mg ) की चौदह गोली का पत्ता मात्र सात रुपये का आता है, जबकि इसी एसिडिटी के लिये रेबीप्रेजोल लिवोसॉफाईड की एक ही गोली चौदह रुपये की मिलती है। एलर्जी के लिये प्रयोग होने वाली दवा लिवोसिट्रिजिन की दस गोली का पत्ता मात्र अठारह रुपये का, लेकिन इसमें मोंटील्यूकस मिलाते ही एक गोली की कीमत अठारह रुपये की हो जाती है?

 

 

समाज कल्याणार्थ और समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिये बोले गये कड़वे शब्द कट्टर होते हुए भी औषधि होते हैं, लेकिन समाज को जाति धर्म में बाँटने के लिये बोले गये कट्टर शब्द विष होते हैं। रोगों को ठीक करने की जिम्मेदारी जहाँ चिकित्सकों की होती है वहीं देश में व्याप्त भ्रष्टाचार विषमता कटुता वैमनस्य द्वेष रोकने की जिम्मेदारी संवैधानिक पदों पर आसीन माननीयों की होती हैं, लेकिन अगर ये दोनों वर्ग अपनी नैतिक जिम्मेदारी भूलकर समाज और देश को ही खंडित करने और लूटने में लग जाएँ तो देश जरूर सीरिया जैसा बन जायेगा।

 

डाॅक्टर, न्यायाधीश की कुर्सी और मंत्रिपद पर बैठा व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से तो हिंदू, मुस्लिम, ईसाई या सिक्ख या दलित हो सकता है, लेकिन “पद” कभी भी जाति धर्म से बंधा नहीं होता। बहुत लम्बे समय से सत्तासुख या माननीयपद आनंद भोग रहे नेताओं और जजों को भी कभी कभार सरकारी दफ्तरों, बाजारों, पैंठों, सब्जीमंडियों में भी बिना सिक्योरिटी और बिना पूर्वसूचना के घूम आना चाहिये, तभी उनको देश प्रदेश के सांप्रदायिक सौहार्द और सहिष्णुता और महंगाई शोषण भ्रष्टाचार की असलियत का अंदाज होगा कि जनमानस की पीड़ा दुःख क्या है और दवाई क्या दी जा रही है ?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh