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प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरुरत नहीं
कृषि ,शिक्षा, उद्योग, चिकित्सा ,रेलवे सड़क हवाई यातायात,संचार तंत्र ,वनघनत्व एवं वृक्षारोपण ,सिंचाई एवं बांध निर्माण विद्युत् और न्यायिक एवं प्रशासनिक सेवाओं का विस्तार एवं इनमे व्याप्त भ्रष्टाचार के अलावा माननीयों की बौद्धिक मानसिक शैक्षिक स्थिति को विकास का आधार मानकर 15 अगस्त 1947 को शून्य पटल पर रखकर 31 दिसंबर 2017 तक के समयांतराल को प्रति वर्ष के वार्षिक आधार पर विकास आंकलन करते ही देश की गति और दिशा दोनों का निर्धारण हो जायेगा जिसमे कुछ कहने सुनने देखने की संभावना नहीं रह जायेगी /जीडीपी एक टेक्नीकल शब्द है जिसे समझना और समझाना आंकड़ों की बाजीगरी मात्र है /अब तो नाईयों, हलवाइयों, ब्यूटीपार्लरों, डाक्टरों की क्लीनिकों और दुकानों के उद्धघाटन ही क्षेत्रीय माननीयों के द्वारा किये गये विकास के मानक बन गये हैं /विकास को पालने पोसने परोसने के साथ साथ जनसहयोग और जनसेवा का दावा करने वाले जितने भी प्रकार के प्राधिकरण और निगम सरकारी तंत्र के सहयोगी पार्टनर हैं वहाँ इनमे कार्यरत नियमित और संविदा या डेपुटेशन पर ही रखे गये अधिकारियों और कर्मचारियों से लेकर इनका दायित्व सँभालते मंत्रियों के ही व्यक्तिगत आर्थिक विकास का सटीक आंकलन हो जाय तो हर प्रदेश पर केंद्र सरकार का चढ़ा कर्जा एक बार में ही उतर सकता है/ “योजना ” शब्द की सुगंध से ही सचिवालयों एवं विभागीय कार्यालयों के अधिकारीयों के अलावा माननीयों का भी अंतःकरण एक पल में शुद्ध हो जाता है लेकिन करदाता बेचारे को किसी अन्य टैक्स के हंटर से शोषण का अहसास ?
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