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प्रश्न तो नौजवानों के भविष्य का है ?

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प्रश्न तो नौजवानों के भविष्य का है ?
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भारत की 16वीं लोकसभा के चयन करते हुए पूरे भारत के 81 करोड़ मतदाता कहीं क्षेत्र तो कहीं धर्म,तो कहीं संप्रदाय ,तो कहीं जाति को प्राथमिकता और वरीयता देकर कुल मिलकर 543 लोगों को भारत के 125 करोड़ नागरिकों का भाग्य निर्माता बनाएंगे और उसके बाद ये 543 लोकसभा सदस्य राज्यसभा के 218 सदस्यों के साथ मिलकर पूरे पांच वर्ष तक ही नही बल्कि आजीवन ये और इनका परिवार भारत के करदाताओं पर एक बोझ बन जायेगा /अब प्रश्न यह है कि ये जनता पर बोझ हैं या फिर जनता इनपर बोझ है क्योंकि माननीयों का जीवन भारतीय करदाताओं पर तो एक ऐसा अभिशाप है जिसका वर्णन शब्दों में किया ही नही जा सकता और इनके मरने पर भी इनके अंतिम संस्कार तक का बोझ भी भारतीय करदाता ही वहन करता है /नेताओं पर आरोप लगता है कि ये जमीन से जुड़े नही हैं और कुछ पर आरोप लगता है कि येतो जमीन से ही चिपक गए हैं क्योंकि जहाँ कहीं विधानसभा या लोकसभा चुनाव क्षेत्र अतिसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित होता है वहां पहली बार तो माननीय वास्तव में निर्धन और भूमिविहीन होता है लेकिन अगले चुनाव तक तो यह भी हजारों एकड़ भूमि का स्वामी बन चूका है /कुछ महानुभाव माननीय तो ऐसे भी हुए हैं जो स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी कहे गए और उनके बारे में यह बताया गया कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढ़ कर निस्वार्थ हिस्सा लिया था लेकिन पहली लोकसभा गठन होने के बाद इन्होने भी भारतीय कोष पर डाका डालने में कोई कसर नही छोड़ी और न केवल इनका अंतिम संस्कार भारतीय करदाताओं के दिए टैक्स से किया गया बल्कि मरने के बाद भी उन्होंने कई एकड़ उपजाऊ जमीन पर कब्ज़ा जमा लिया ,जहाँ इनके नाम की समाधि ,स्मारक या भवन बन गए /भारत की जनहित योजनाओं का नामकरण भी इन्ही माननीयों के शिरोधार्य हुआ और इनका खानदान भारत पर सिर्फ एक बोझ बनकर आज भी लोकतांत्रिक मूल्यों का उपहास उड़ा रहा है /कुछ माननीयों का परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी लोकतंत्र का उपहास उड़ा रहा है और कुछ माननीयों के दामाद तो भारत के ही दामाद बन गए / राष्ट्रपिता शब्द या पदवी भले ही संविधान से मान्यता प्राप्त न हो लेकिन राष्ट्रपिता का बचा खुचा परिवार तो इन्ही माननीयों की श्रेणी में रहा है उदाहरणर्थ राजदूत या राज्यपाल का पद तो इन्ही 543 सदस्यों के सेनापति की कृपा पात्र होता है और राष्ट्रपिता के पुत्र पौत्रों ने भी पूरा सुख भोगा है /लालबहादुर शास्त्री का जीवन आदर्श राजनीतिज्ञ होने का प्रमाण था, है और रहेगा भी लेकिन उनके पुत्र पौत्रों ने क्या उनके आदर्शों का पालन किया लेकिन नरेंद्र मोदी शास्त्री जी और वल्लभभाई पटेल के आदर्शों पर चलने के लिए जनमानस से अपील करते हैं लेकिन जनता एक प्रश्न तो मोदी जी से पूछ ही सकती है कि शास्त्री और पटेल के आदर्शों पर उनके ही पुत्र पौत्र क्यों नही चलते ? बहुत गंभीर प्रश्न मैं उठा रही हूँ कि किसी सैनिक की सेवा स्थल पर दुश्मन से लोहा लेते समय हुई मृत्यु और किसी माननीय की मृत्यु क्या कभी समान सम्मान वाली हो सकती है ?सैनिक की मृत्यु और माननीय दोनों का अंतिम संस्कार सरकारी धन से किया जाता है ?माननीय का परिवार क्या अपने मृतक माननीय के अंतिम संस्कार तक का खर्च वहन नही कर सकता ?नरसिम्हा राव और चंद्रशेखर के अंतिम संस्कार का विवाद लिखना उचित तो नही लेकिन जनमानस को जंझोरता अवश्य है कि आखिर माननीयों को किस स्तर तक जनता ढोये ?छत्तीसगढ़ में पिछले वर्ष हुए नक्सली हमले में मरे एक 80 वर्षीय निष्क्रय हो चुके पूर्व माननीय को केंद्र सरकार ने तुरंत ही शहीद का दर्जा दे दिया लेकिन भारतीय सेना के जासूस यदि पाकिस्तानी जेलों में तड़पाकर मारे जाते हैं तो उनको शहीद का दर्जा तो बहुत दूर की बात उनके शव तक को भारत में नही लाने दिया जाता और बेचारे उनके परिवारजन हाथों में तख्ती पकडे बेबस जनता से इन्साफ मांगते हैं /पदम पुरुस्कारों में तो विवाद सुने पढ़े जाते ही हैं लेकिन भारत रत्न भी क्या एक माननीय की खानदानी विरासत बन गयी जिसको प्रत्येक सदस्य को दिया गया जबकि इसी भारत रत्न के लिए संविधान निर्माता को 34 वर्ष तक गैर कांग्रेसी सरकार बनने की प्रतीक्षा करनी पड़ी ?माननीय को पेंशन देने का औचित्य क्या है जबकि केवल सेना को छोड़कर सारी ही सरकारी सेवा में 2005 के बाद से पेंशन बंद की जा चुकी है ?यह चुनाव महज 543 माननीय चुनने या 16वीं लोकसभा गठन का नही है बल्कि सामान्य श्रेणी या सामान्य जाति के नौजवानों के भविष्य का भी है /सामान्य जाति या सामान्य श्रेणी के नौजवानों को माननीय बनने वाले उम्मीदवारों से यह प्रश्न खुलकर पूछना चाहिए कि सामान्य वर्ग के जीवन और भविष्य सुरक्षा के लिए माननीयों की क्या रणनीति है और माननीय बनने के बाद उनकी क्या योजना होगी ?अगर माननीय इस प्रश्न का उत्तर देने में हिचकता है तो उसकी निष्ठा संदिग्ध है और यदि कहता है कि आरक्षण नीति जारी रहनी है तो उसका उद्देश्य भारत के विकास का नही बल्कि सत्ता सुख भोगने के लिए माननीय बनना मात्र है /भारत की दुर्दशा और अंतर्राष्ट्रीय पिछड़ेपन के कारण गिनाते हुए जब नरेंद्र मोदी एकमात्र कारण साठ वर्ष के कांग्रेस कुशासन को जिम्मेदार ठहराते हैं तो फिर शिक्षा एवं नौकरी में जातिगत धर्मगत आरक्षण को उचित कैसे ठहरा सकते हैं ?क्योंकि आरक्षण व्यवस्था मात्र दस वर्षों के लिए ही प्रस्तावित थी लेकिन अब तो 60 वर्ष हो गए तो देश की बर्बादी और सामान्य जाति के नौजवानों के भविष्य की बर्बादी के लिए यह आरक्षण नीति जिम्मेदार नही है क्या ?अगर नरेंद्र मोदी को इस कांग्रेसी आरक्षण नीति को जारी रखना है तो सामान्य जाति के नौजवानों का लोकसभा चुनाव में वोटिंग करने या नरेंद्र मोदी को समर्थन करने का कोई तर्क, स्वार्थ या अर्थ ही नही रह जाता है ?जनरल केटेगरी के नौजवानों का भविष्य यह त्रुटि पूर्ण और विध्वंसक आरक्षण नीति बर्बाद कर रही है क्योंकि जब प्रतिभा और योग्यता को अवसर ही नही मिलेगा तो देश का विकास कैसे होगा ?सड़कें बनवाना, बिल्डिंग बनवाना ,उद्योगपतियों को जमीन उपलब्ध कराना ही यदि मोदीजी का विकास मॉडल है तो मोदीजी को इनके पीछे प्रतिभा और योग्यता का योगदान क्यों नही दिखता ?विकास को गति प्रतिभा योग्यता दक्षता से मिलेगी नाकि नेताओं के भाषणों से मिलेगी ?मोदीजी को सबसे पहले जातिगत और धर्मगत आरक्षण पर अपनी नीति स्पष्ट करनी चाहिए और यदि मोदीजी और कांग्रेसी विचारधारा आरक्षण पर एक समान है तो जनरल केटेगरी के नौजवानों का चुनाव में मतदान करने का क्या औचित्य रह जाता है ?यह चुनाव यूपीए या एनडीए सरकार के गठन से कहीं अधिक महत्वपूर्ण तो जनरल केटेगरी के नौजवानों के भविष्य का है इसलिए अगर आरक्षण नीति बदस्तूर जारी रहती है तो फिर यूपीए सरकार बने या एनडीए ,जनरल केटेगरी के नौजवानों का तो भगवान ही मालिक है /अब तक के माननीयों ने जिस प्रकार मुसलमानों के लिए सब्सिडी और मुआवजा एक वैकल्पिक रोजगार बना दिया है ,ठीक उसी प्रकार इस 16वीं लोकसभा के माननीय जनरल केटेगरी के नौजवानों के लिए भीख को ही विकल्प बनाकर देंगे ,अतः जेनेरल केटेगरी के सामने खड़े इस संकट के समाधान का मोदी क्या प्रस्ताव रखते हैं यह जानना भी आवश्यक हैं ?
रचना रस्तोगी

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