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छवि – एक माँ की

सीधी बात
सीधी बात
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पत्थर को भी भगवान बना देती है माँ
जल ,दूध ,पुष्प अर्पित कर बदले में उनसे
हमारे लिए दुआ मांग लेती है माँ
रीति, रिवाज , संस्कारो का धागा बुन
कभी व्रत कभी उपवास के बहाने
जब -तब हमें पहना देती है माँ
रिश्तो को सहेजना जरुरी है
अपने घर की बुनियाद हो तुम
मन्त्र ऐसा कानों में धीरे से फूंक
बेटी को ससुराल विदा कर देती है माँ

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