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त्वरित प्रतिक्रिया आवेश की पराकाष्ठा है |

सीधी बात
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एक साधारण कथन है कि भीड़ कि कोई मनोदशा नहीं होती इसलिए जब भी एक साथ ढेर सारे लोग एक जगह इकट्ठे हो कर रैली या प्रदर्शन करते है तो उस समय उस भीड़ को नियंत्रित करना एक बड़ा काम होता है क्योंकि इस ढेर सारे एकत्र लोगो में से यदि कोई भी ऐसी अफवाह या बयानबाजी फैले जो सही न हो तो ऐसे में हादसे होने में जरा भी समय नहीं लगता कुछ ऐसा ही स्वभाव मनुष्य का भी है कि मनुष्य हर बात पर त्वरित प्रक्रिया देता है |आप में से कई लोगो ने उस नेवले की कहानी पढ़ी होगी जिसे एक किसान ने पाल रखा था मगर किसान की पत्नी उस नेवले को बिलकुल ही नापसंद करती थी | एक दिन अपने नवजात बच्चे को घर में सुला कर पति -पत्नी किसी काम से बाहर चले गए | उसी दौरान घर में बड़ा सांप आया नेवले ने बहुत देर तक उस सांप से लड़ाई की और उसे मार डाला , उसके बाद घर के मालिक के आने की आवाज सुन कर नेवला बाहर भागा-भागा आया सच , उसने तो बड़ी ही बहादुरी का काम किया था मगर किसान की पत्नी ने जब उस नेवले के मुंह में खून लगा देखा ! तो उसे लगा कि इसने मेरे बच्चे को मार दिया बिना कुछ भी सोचे समझे उसने पास पड़ा पत्थर उठाया और उस नेवले को मार दिया | उसके बाद जब दोनों घर के अंदर गए तो सामने उनका बेटा पालने में सो रहा था और पास में ही एक बड़ा सांप मरा पड़ा था अब सभी बाते उनके समझ में आ गयी कि नेवले ने उनके बच्चे की रक्षा के लिए उस सांप से लड़ाई की थी | पत्नी को बहुत पश्चाताप हुआ मगर अब क्या हो सकता था ? हममे से कितने ही लोग बिना सोचे समझे इसी तरह से तुरंत ही कोई निर्णय ले लेते है इस तरह की प्रतिक्रिया कई बातो पर आधारित होती है | एक हममे से कितने ही लोग बिना सोचे समझे किसी के बारे में एक राय बना लेते है कि अमुक व्यक्ति ,अमुक वर्ग , अमुक प्रान्त या किसी भी क्षेत्र को ले कर एक धारणा बना लेते है और तुरंत उस पर अपनी प्रतिक्रिया दे देते है | हमारे मन -मस्तिष्क में बचपन से कुछ बाते ऐसे बैठ जाती है जैसे कि अगर हमें बचपन से ही किसी पशु या जीव जंतु के बारे में बताया जाये कि यह पशु खतरनाक होता है तो अचानक उस प्राणी के सामने आते ही हमारी प्रतिक्रिया यही होगी कि यह हमें नुकसान पहुंचाएगा और हम तुरंत उससे बचने के लिए उस पर हमला कर देते है इसी प्रकार किसी भी व्यक्ति या कैसी भी घटना के बारे में एक धारणा हमारे मन में बन जाती है इसे ( Negative Core Beliefs ) कहते है यह अवचेतन मन में हमारी मस्तिष्क में बैठी रहती है और परिस्थितियों के विपरीत होते ही अपने सुरक्षा को ले कर चिंतित मन तुरंत प्रतिक्रिया देता है | आप मे से कितने ही लोग इस बात को मानते होंगे की यदि कुछ भी अच्छी बात या अच्छा काम हो तो हम अपने को ले कर प्राउड फील करते है मगर जरा भी कुछ गलत होने पर एक स्वभाविक प्रवृत्ति है कि हम अपने को दूसरे से कमतर आँक लेते है और यही कारण है कि त्वरित प्रतिक्रिया जो होती है उसमे गुस्सा तथा आवेश ज्यादा होता है परिणामत: परिस्थितियाँ हमारे खिलाफ चली जाती है | एक नकारात्मक भाव जो हमारे अन्दर होता है वह कभी -कभी अनुवांशिक NURTURE(heredity) या फिर  NATURE(enviornment) के कारण हमारे अन्दर बैठ जाता है कभी – कभी हमारे स्वभाव में ही एक गुस्से कि भावना बैठी रहती है कभी -कभी हम जिस माहौल में पलते -बढ़ते है वहां भी गुस्सा या अशांति का ऐसा माहौल बना रहता है जिससे हमारे अन्दर नकारात्मकता कि भावना प्रबल रूप से आ जाती है और हम हर बात पर किसी दूसरे को दोष देना और उसे कठघरे में खड़ा करना सीख जाते है | अगर इन्ही प्रवृत्तियों पर हम लगाम लगाना सीख जाये तो शायद माहौल इतना ख़राब न हो और अपराध भी इतना न बढे कि हम सभी एक दूसरे पर दोषारोपण करने में अपना वक्त जाया करे |

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