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हमारे देश के लिए यह दौर अजीब उथल – पुथल भरा है जबकि ऐसे में घपले , घोटाले , भ्रष्ट्राचार यहाँ तक की केन्द्रीय सतकर्ता आयोग तक की प्रासंगिकता पर उँगलियाँ उठ रही हो ,खेल की दुनिया में आईपीएल जैसे क्रिकेट के महाकुम्भ में लाखो -करोडो कमाने वाले क्रिकेटर मैच -फिक्सिंग के जाल में फंसे है जाहिर है देश की अंदरूनी हालात किसी भी सूरत में बहुत आशाजनक और उत्साहवर्धक तो नहीं है ऐसे में पडोसी मुल्क के साथ रिश्ते किस हद तक और किस प्रकार से बने रहे यह एक विचारणीय प्रश्न है | दरअसल नवाज शरीफ को चुनाव में बहुमत मिलते ही भारत पकिस्तान के रिश्तो को ले कर एक प्रकार की सुगबुगाहट मीडिया से ले कर देश के हर प्रबुद्ध भारतीयों के मन में उठने लगे है मगर यहाँ एक बात पूरी तरह से स्पष्ट होनी चाहिए कि पाकिस्तान में लोकतंत्र अभी शैशवस्था में है जिस तरह से वहां पर कट्टरपंथ और सामन्तवाद का जोर है उसमे लोकतान्त्रिक मूल्यों का जीवित रहना बहुत जरुरी है ऐसे में मियां नवाज कि जीत एक तरह से नरमपंथी दलों के जीत के रूप में नजर आ रही है जो कुछ हद तक भारत की बैचेनियो को थोड़ी राहत देने वाली हो सकती है | मगर राजनीति भावनाओ से नहीं चलती ऐसे में जबकि वहां सैनिक शासन पूरी आवाम को अपनी मुट्ठी में रखना चाहता हो और लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओ का पुरजोर विरोध करता रहा हो भारत के साथ संबंध का अनुकूल होना थोडा मुश्किल है | जबकि आतंकवादी गतिविधियों का पूरा संचालन इस प्रकार हो रहा हो कि हमारा देश लगातार उसके दंश को झेल रहा हो आये दिन सरहद पार से आतंकवादियों कि घुसपैंठ ने हमारा जीना मुहाल किया हो उस पर किस हद तक पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमन्त्री अपना नियन्त्रण बनाये रख पाते है इस बात पर निर्भर करता है संबंधों का ताना-बाना | एक पडोसी देश होने के नाते पाकिस्तान के साथ संबंधो को सामान्य बनाये रखने की मज़बूरी और जरुरत दोनों हमारा धर्म है और ख़ुशी की बात है कि भारत ने हमेशा ही एक बेहतरीन पडोसी होने का पूरा धर्म निभाया है जबकि पाकिस्तान की तरफ से कितने ही दफा हमारी संप्रभुता तथा स्थायित्व को चुनौती मिली है इन सभी बातो के बावजूद अगर पाकिस्तान सबसे बड़े आतंकवादी जो लगातार पैसे तथा आतंक के जरिये इस देश की अमन तथा शांति को चोट पहुँचाता रहा है उसे हमे सौंप दे तो हो सकता है की दोनों देश के बीच संबंध कुछ हद तक सामान्य हो पाए सबसे बड़ी बात है की मियां नवाज के दौर में प्रधानमन्त्री अटलबिहारी वाजपेयी जब उस देश में अमन का पैगाम ले कर गए तो भला कट्टरपन्थियो को यह बात कैसे रास आती ? यह बात समझ से परे है कि किसी देश का प्रधानमन्त्री दूसरे देश के प्रधानमन्त्री के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा हो और उसी के सेना के लोग मेहमान के घरो में सेंध लगा रहे हो यह आश्चर्यजनक किन्तु सत्य है ! अगर प्रधानमन्त्री पद की गरिमा का ऐसा दुरूपयोग हो रहा हो तो उस देश के लिए आशा जनक बाते कहना मुश्किल है ऐसे में भारत जैसे देश की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को उदाहरण की तरह पडोसी देश को लेना चाहिए कि लाख विरोधाभास हो मगर कानून का पलड़ा आज भी हमारे देश में भारी है क्या सिलेब्रेटी ,क्या ऊँचे पदों पर बैठे हुए लोग यदि उनके खिलाफ अपराध के मामले हो वह भी अपने देश के खिलाफ तो उस पर कारवाई होती है और न्यायिक प्रक्रिया का यही रूप शायद आज भी भारत के संविधान तथा लोकतान्त्रिक मूल्यों में पूरी आस जगाता है | भारत जैसे देश के साथ यदि पडोसी देश चाहे तो अपनी गद्दारी और फरेब की आदतों को त्याग कर भारत के साथ संबंधो का एक नया अध्याय लिख सकता है हम सब इस देश के नागरिक होने के कारण सिर्फ उम्मीद कर सकते है किसी भी देश की विदेश नीति क्या हो ? कैसी हो यह तो देश विशेष के नीति नियंता के हाथ में है |
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