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“फैशन बनाम संस्कृति ” (कविता)

सीधी बात
सीधी बात
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ये देखिये मैडम आजकल फैशन में है ये |
सेल्समैन दुकान में कपडे दिखा रहा था
उस षोडशी कन्या को मार्केटिंग के ज्ञान से बहला रहा था |
एक से एक ड्रेस कही बित्ते भर की शर्ट
तो कही घुटने से भी चार इंच ऊपर की पैंट |
कन्या की माँ साथ में खड़ी थी
ज़माने के तौर तरीके से अनजान तो नहीं थी |
उसने सेल्समैन से कहाँ कुछ ढंग के कपड़े दिखाओ
मगर बेटी की पसंद को अच्छे से भांप कर |
सेल्समैन ने माँ को शीशे में उतारना चाहा
लीजिये कैटरीना और करीना के युग में |
आप बेबी को क्यों मजबूर कर रही है
फैशन यही है आजकल इन्ही कपड़ो की माँग बढ़ रही है |
तुम फैशन के नाम पर दुकानदारी चला रहे हो
हम शालीनता के नाम पर संस्कृति भी न बचाए |
उस भद्र महिला ने दुकानदार को डाटा
बेढंगे कपड़ो के ढेर में से मनपसन्द कपडे को छांटा |
और दुकान से निकल गयी
कहते हुए बाय – बाय टा टा |

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