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माँ होने के मायने !

सीधी बात
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इस ब्लॉग को लिखने का मतलब यह कत्तई नहीं है कि इस पुरुष प्रधान देश में कोई पुरुषो का पक्ष ले रहा है दरअसल आज की सबसे बड़ी समस्या महिलाओ की आजादी से जुड़ा हुआ है देश का संविधान कहता है की पुरुष और महिला दोनों को समान रूप से रोजगार करने का ,मत का प्रयोग करने का अधिकार है और महिलाये हर क्षेत्र में पुरुषो के साथ कंधा से कंधा मिला कर कार्य कर रही है इसलिए आजादी का मतलब यही है की अपने अधिकार क्षेत्र का सदुपयोग करना महिलाये सीखे यदि आप काबिल है तो आप हर उस बात का विरोध कीजिये जिससे आपके नारीत्व को चुनौती मिल रही हो, यहां माँ होने के नाते मेरा स्वयं का अनुभव है कि बहुत सी बाते ऐसी है जिन्हें आप नियंत्रित कर सकती है जैसे यदि आप की बेटी किसी ऐसे घराने के लोगो के साथ उठ -बैठ रही है जिन्हें अपने पैसे ,रूपये का इतना अभिमान है कि उसका प्रदर्शन आये दिन करते रहते है तो हमारा फर्ज बनता है कि इस तरह के सम्बन्धो को तुरंत तोड़े रिश्ते ,दोस्ती हमेशा एक जैसे विचारो के लोगो की होनी चाहिए | दूसरी बात नौकरी करना आज की लड़कियों के लिए अत्यंत आवश्यक है मगर सबसे आगे निकलने की हडबडी में उन्हें किसी भी ऐसे समझौते से बचना चाहिए जो उनके देह के माध्यम से किया जाता हो आखिर ऐसी कौन सी मज़बूरी होती है की आपका दैहिक शोषण किया जाये और आप सब कुछ बर्दाश्त करती रहे ज्यादातर मामलों में छोटे -मोटे गिफ्ट से दोस्ती की शुरुआत होती है और फिर यह बेशकीमती उपहारों में तब्दील हो जाता है आप किसी भी ऑफिस या कम्पनी में काम शुरू करती है अचानक बॉस की इतनी मेहरबानी दूसरो के ईर्ष्या का विषय बने या न बने आप स्वयं सोचिये कि आप की यह भूल आप को बहुत महंगी पड़ जाती है ऐसे में माँ का फर्ज बनता है कि अपनी बेटी के इस बचपने को चेक करे न कि उसे बढ़ावा दे | एक बहुत जरुरी बदलाव जो देखने में आ रहा है वह है कि राजनीतिज्ञों खासतौर पर नेताओ को आम तौर पर अच्छी तथा प्रतिभाशाली लडकियाँ अपनी जरुररत या उद्देश्य की पूर्ति के लिए मसीहा मान कर उनके बहकावे में आ कर गलत ढंग से काम करके आगे बढ़ना चाहती है यहाँ भी माँ की भूमिका बढ़ जाती है बच्चे कितने भी बड़े हो जाये अनुभव तथा उम्र के हिसाब से माँ ही बड़ी होती है प्यार दुलार तथा डांट-फटकार सबका प्रयोग करके अपने बच्चो को सही गलत की पहचान की जिम्मेदारी आखिर माँ की ही होती है |
मनोविज्ञान के अनुसार जब लड़कियां टीन एज होती है तो ज्यादातर परिपक्व पुरुषो की ओर आकर्षित होती है इसके पीछे सामान्य सी धारणा यह होती है कि ऐसे पुरुष ज्यादा समझदार तथा गंभीर होते है अधिकतर शादीशुदा पुरुषो के जाल में लड़कियां फंस जाती है इस पुरुषवादी समाज में कोई भी पुरुषो को दोष नहीं देता मगर माँ को इन बातो पर ध्यान देना चाहिए कि उसकी कम उम्र बेटी में रूचि दिखाने वाला पुरुष अपनी हद को सिर्फ पार ही नहीं कर रहा है वह कही न कही अपनी पत्नी के साथ में धोखा भी कर रहा है ऐसे पुरुष कभी भी ब्याह न करके लडकियों की जिन्दगी बर्बाद करते है तो क्या माँ का फर्ज यह नहीं बनता कि वह ऐसे रिश्तों को आगे बढ़ने से रोके ? अगर माँ जरा भी समझदार हो तो कोई मधुमिता या कोई गीतिका कभी भी असमय मौत की भेंट न चढ़े |

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