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भारत और चीन की सेनाएं जून से ही भूटान के डोकलाम में आमने-सामने खड़ी हैं. चीन और भारत की सरकार की तरफ से रोज ही आक्रामक बयानबाज़ी हो रही है. चीन की तरफ से भारत को रोज युद्ध की धमकी दी जा रही है. भारत की अमेरिका और इजराइल से बढ़ती नजदीकी तथा एशिया में बढ़ते प्रभाव की वजह से चीन काफी चिढ़ा हुआ है. लेकिन चीन के अंदर की उथल-पुथल का आकलन अभी तक कोई भी भारतीय मीडिया हाउस बता नहीं रहा है.
आखिर चीन के इतने आक्रामक होने की वजह केवल व्यापारिक, आर्थिक और सैन्य प्रतिष्पर्धा है या कुछ और भी कारण हैं, जिससे चीन इतना आक्रमक हैं? मेरा आकलन हैं कि चीनी आक्रामकता की कुछ और वजहें हैं. अभी कुछ दिन पहले ही न्यूज़ में था कि चीन अपने सैन्य संगठन में भारी बदलाव करने जा रहा है, जिसकी वजह से चीन के १० लाख सैनिकों की नौकरी खतरे में है. चीन में भ्रष्टाचार के आरोप में सेना के कई जनरल्स को भी बर्खास्त कर दिया गया था. चीन की सेना में इन दोनों वजहों से भारी असंतोष फ़ैल रहा था. जिसकी वहज से चीन के राजनीतिक नेतृत्व ने सेना को सीमा संबंधी विवादों में उलझा दिया हैं, ताकि सेना का ध्यान बटा रहे. इन परिस्थितियों में चीन अपनी सेना को किसी छोटे युद्ध में भी उलझा सकता हैं.
चीन का अभी अपने लगभग सभी पड़ोसी देशों से सीमा सम्बंधित विवाद चल रहा हैं और सभी जगह चीन बहुत आक्रामक है. कोई भी कूटनीति कुशल राष्ट्र एक साथ अपने इतने पड़ोसियों से विवाद नहीं कर सकता. चीन अपनी सेना में फ़ैल रहे असंतोष को इसी बहाने दबाने का प्रयास कर रहा है. सेना ही चीन में कम्युनिस्टक शासन की सबसे मजबूत कड़ी है और इसके कमजोर होते ही चीन में कम्युनिस्टक शासन का अंत हो जायेगा. चीन के आक्रामकता की दूसरी वजह चीन में लोकतंत्र की मांग का बढ़ना है, जिससे वहाँ का कम्युनिस्टा शासन हमेशा से ही भारी दबाव में रहता है. लिउ सिआओबो की मौत पिछले हफ्ते सरकारी जेल में हुई है. इन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार मिला था. ये चीन के जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता थे और लोकतंत्र के समर्थक थे.
चीन की सरकार इनसे कितनी भयभीत थी कि जेल से इनको कैंसर पीड़ित होने के बावजूद रिहा नहीं किया तथा इनकी पत्नी भी इनके साथ ही जेल में थी. इनकी मौत के बाद चीन के कम्युनिस्टन शासन की कमजोरी खुलकर विश्व के सामने आ गयी. चीन को आंतरिक रूप से उइगर मुस्लिमों और तिब्बती बौद्ध भिक्षुवों के भारी विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है. उइगर मुस्लिमों ने कई हमले भी शिनजियांग प्रान्त में किये हैं. चीन यहाँ पर हान समुदाय के लोगों को जबरदस्ती बसा रहा है.मुस्लिम समुदाय पर कई तरह के सख्त प्रतिबन्ध लगाए गए हैं. इन्हें रोजा और दाढ़ी रखने की इज़ाज़त नहीं है. महिलाओं को बुर्का पहनने पर भी प्रतिबन्ध है.
बौद्ध भिक्षु तिब्बत पर चीन के अवैध कब्ज़े के खिलाफ आत्महत्या करके चीन के नेतृत्व पर भारी दबाव बना रहे हैं. चीन के राष्ट्रपति जो कि चीन में कम्युनिस्टु पार्टी और सेना के भी प्रमुख होते हैं, ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा अभियान चलाया था, जिसमे कम्युनिस्टक पार्टी, सेना और सरकार के कई उच्च पदेन अधिकारी बर्खास्त कर दिए गए थे. इससे तीनों जगहों पर भारी असंतोष था. चीन के राष्ट्रपति सी जिनपिंग ने प्रशासन, पार्टी और सेना पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए आक्रमक नीति को अपनाया है.
अब आते हैं कि अगर भारत-चीन युद्ध हुआ, तो उसका क्या परिणाम हो सकता है. चीन के भारत पर आक्रमण करने पर सबसे पहला असर यह होगा कि भारत की सेना को दो मोर्चों पर लड़ाई शुरू करनी होगी. क्यों कि पाकिस्तान, चीन की मदद से भारत के विरुद्ध लड़ाई छेड़ सकता है. भारत की तरफ से इजराइल जापान और अमेरिका आ सकते हैं. वियतनाम और रूस भी भारत को कुछ समर्थन दे सकते हैं. चीन, पाकिस्तान और श्रीलंका स्थित अपने नौसैनिक ठिकानों का भी प्रयोग कर सकता है, जिसके जवाब में भारत ताजिकिस्तान स्थित अपने वायुसैनिक ठिकाने, वियतनाम स्थित अपने नौसैनिक ठिकानों का प्रयोग करेगा और जरूरत पड़ने पर अफगान सरकार के भी वायुसैनिक ठिकानों का प्रयोग कर सकता है.
दोनों सेनाओं में सबसे बड़ा अंतर यह है कि भारत की सेना पिछले २०-३० वर्षों से लगातार युद्ध अभियानों पर ही रही है. उत्तर पूर्व भारत, कश्मीर, नक्सल समस्या और संयुक्त राष्ट्र के अभियानों में भाग लेने से भारतीय सेना युद्ध की अभ्यस्त हो गयी है. इसके विपरीत चीन की सेना ने कोरिया युद्ध के बाद कोई भी लड़ाई नहीं लड़ी है. सैन्य अभ्यास विश्व की लगभग हर सेना करती है, लेकिन असली युद्ध और युद्ध अभ्यास में भारी अंतर है. जब दोनों सेनायें टकराएंगी तो ये फैक्टर भारी अंतर पैदा करेगा.
१९६२ और २०१७ की भारतीय सेना और राजनीतिक नेतृत्व में जमीन-आसमान का अंतर है. भारत की सेना काफी साधन संपन्न है और राजनीतिक नेतृत्व पूर्णतया सजग है. भारतीय सेना की लड़ाकू क्षमता विश्व प्रसिद्ध है. चीन के अधिकतर हथियार री-इंजीनियरिंग किये हुए हैं, जबकि भारत के पास विभिन्न प्रकार और विभिन्न देशों से प्राप्त ओरिजिनल बने हुए हथियार हैं. अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान में उपस्थिति भी भारत के लिहाज से अनुकूल है. इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए भारत और चीन के बीच पूर्ण युद्ध की संभावना लगभग न के बराबर ही है. सीमा पर छोटी-मोटी झड़प जरूर हो सकती है. जैसा की १९६७ और १९८७ में हुआ था और चीन ने दोनों ही बार मुंह की खायी.
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