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सुप्रीम कोर्ट में महात्मा गांधी की हत्या का मामला फिर पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट ने महात्मा गाँधी हत्याकांड की फिर से जाँच करने के लिए सुनवाई शुरू की है. सुप्रीम कोर्ट ने भूतपूर्व अडिशनल सॉलिसिटर जनरल अमरेंद्र सरन को न्यायमित्र नियुक्त किया है. यह पिटीशन मुंबई के डाक्टर पंकज फडणवीस ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई है.
डॉ. पंकज एक रिसर्च स्कॉलर और अभिनव भारत संगठन के ट्रस्टी भी हैं. डॉ. पंकज इस मामले में कुछ नए तथ्य सामने लाना चाहते हैं. इनका मानना है कि देश के सबसे बड़े मामलों में से एक है और इस हत्याकांड की जांच में काफी महत्वपूर्ण तथ्य अनदेखे कर दिए गए थे.
डॉ. पंकज का कहना है कि गाँधी जी को ४ गोलियाँ मारी गयी थी. जिसमें से ३ गोलियाँ नाथूराम गोडसे की बरेटा पिस्तौल की थी, लेकिन चौथी गोली उस पिस्तौल से नहीं मरी गई थी. इसकी पुष्टि दिल्ली के तत्कालीन आई जी के एक पत्र के जवाब से होती है जो उन्होंने पंजाब सीआईडी की सायंटिफिक लैब के डायरेक्टर को लिखा था. सायंटिफिक लैब ने उन्हें बताया की यह गोली नाथूराम की पिस्तौल से नहीं चली थी. अब यहां सवाल यह है कि–
१. क्या वहां कोई और भी शूटर था जिसने गाँधी जी पर गोली चलाई?
२. अगर ऐसा था उसे वहां किसने भेजा था?
३. पुलिस ने इस मामले को आगे क्यों नहीं बढ़ाया और इसकी जाँच क्यों रोक दी गयी?
इस मामले एक पेंच और भी है कि कभी इस बात का पता नहीं लग पाया कि नाथूराम गोडसे की बरेटा पिस्तौल का असली मालिक कौन है. यहां तक कि इटली की बरेटा कंपनी को भी बार-बार रिमाइंडर भेजने पर भी कंपनी ने कभी इसके असली मालिक का नाम नहीं बताया है.
डॉ. पंकज का दूसरा आधार है कि इस उच्च स्तरीय मामले में मामले में कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण लोगों को गवाह ही नहीं बनाया गया और ना ही उनके बयान लिए गये हैं. ऐसे एक व्यक्ति थे अमेरिकन एंबेसी के वाइस कौसुल हार्बर्ट ‘टॉम’ रेनर जो कि घटना स्थल पर ही मौजूद थे. ये गाँधी जी से लगभग ५ फ़ीट कि दूरी पर ही थे जब नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी को गोलियों से बेध दिया था. इन्होंने ही दौड़कर नाथूराम को पकड़ा तथा उसके हाथ से पिस्तौल छीनी थी. इतने महत्वपूर्ण गवाह कि गवाही ना होना भी काफी संदेहास्पद है.
इसके अलावा इतनी बड़ी घटना में केवल दो लोगों को फांसी तथा ३ लोगों को उम्रकैद हुई थी. ३ लोगों को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया गया था. केवल ८ लोग ही मिलकर इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे यह बिलकुल ही स्वीकार योग्य तथ्य नहीं है.
नेहरू सरकार को अभी सत्ता में आये हुए केवल 5 महीने ही हुए थे और तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल से नेहरू जी के संबंध ठीक नहीं चल रहे थे. गाँधी जी इससे काफी व्यथित रहते थे. गाँधी जी अपने हत्या वाले दिन ४ बजे पटेल जी से इसी सिलसिले में एक मुलाकात की थी. इस मुलाकात के बाद बिरला भवन में प्रार्थना के लिए जाते वक़्त रास्ते में नाथूराम ने गाँधी जी की हत्या कर दी थी.
महात्मा गाँधी पर पहले भी जानलेवा हमले हो चुके थे. उनकी हत्या से १० दिन पहले ही मदनलाल पाहवा ने उन पर बम से हमला किया था, लेकिन निशाना चूक जाने के कारण गाँधी जी की जान बच गयी थी. इंटेलिजेंस की रिपोर्ट भी थी कि महात्मा गाँधी जी पर जानलेवा हमला हो सकता है. इसके बावजूद नेहरू सरकार ने महात्मा गाँधी जी की सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं किये थे. यहां कई सवाल उठते हैं:-
१. महात्मा गाँधी जी को पर्याप्त सुरक्षा क्यों नहीं मुहैया करवाई गयी थी? अगर गाँधी जी स्वयं के लिए सुरक्षा नहीं चाहते थे तो सादी वर्दी में उनके आसपास पुलिस वालों और ख़ुफ़िया विभाग के अधिकारियों की तैनाती क्यों नहीं की गयी?
२. पुलिस का गुप्तचर विभाग इतने बड़े षड्यंत्र का पता क्यों नहीं लगा सका, जबकि केवल १० दिन पहले ही एक बड़ा हमला किया जा चुका था?
३. गोली लगने के बाद गाँधी जी को हॉस्पिटल न ले जाकर वापस बिरला हाउस में क्यों ले जाया गया?
४. जब देश के गृहमंत्री वहां आये थे तब भी कैसे एक आदमी भरी पिस्तौल लेकर वहां कैसे पहुँच गया?
५. गाँधी जी की हत्या से किसको तत्कालीन फायदा होने वाला था?
६. हार्बर्ट ‘टॉम’ रेनर गाँधी वध से कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान भी गया था. क्या रेनर की पाकिस्तान यात्रा से भी इस हत्याकांड का कुछ संबंध है?
सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. पंकज से पूछा है कि क्या घटना के इतने सालों के बाद में कोई सबूत और गवाह मिलेंगे? कोर्ट ने यह भी पूछा की जिस तीसरे व्यक्ति की बात याची कर रहा है वह जीवित है? इस पर डॉ. पंकज ने कहा कि उन्हें नहीं पता की वह व्यक्ति जीवित है या नहीं? उन्होंने यह भी कहा कि यह तीसरा व्यक्ति कोई संस्था भी हो सकती है, जिसने महात्मा गाँधी हत्याकांड का षड्यंत्र रचा हो. डॉ. पंकज ने इस बात पर जोर दिया कि इन सभी बातों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन इस मामले की जाँच होनी चाहिए, जिससे महात्मा गाँधी की निर्मम हत्या का सच भारत की जनता जान सके.
डॉ. पंकज का कहना है कि हार्बर्ट ‘टॉम’ रेनर ने महात्मा गाँधी हत्याकांड से सम्बंधित कुछ जानकारी महत्वपूर्ण अमेरिका भी भेजी थी. अमेरिकन सरकार के पास भी इस हत्याकांड से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण जानकारियाँ हो सकती हैं. इन जानकारियों से इस हत्याकांड में कई नए खुलासे हो सकते हैं.
महात्मा गाँधी की हत्या ३० जनवरी १९४८ की शाम में बिरला भवन में शाम की प्रार्थना के लिए जाते समय रास्ते में कर दी गयी थी. नाथूराम गोडसे और उसके ७ अन्य साथियो पर महात्मा गाँधी हत्याकांड का आरोप लगा. इस हत्याकांड के आरोपी थे:-
१. नाथूराम गोडसे – फाँसी की सजा
२. नारायण आप्टे – फाँसी की सजा
३. विनायक दामोदर सावरकर – अदालत से बरी
४. विष्णु रामकृष्ण करकरे – आजीवन कारावास
५. मदन लाल पाहवा -आजीवन कारावास
६. गोपाल गोडसे -आजीवन कारावास
७. शंकर किस्तैया – अदालत से बरी
८. दिगंबर बड़गे – सरकारी गवाह बनाने के कारण अदालत से बरी
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