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रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी समस्या का कारण

ragehulk
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आज-कल हमारे कई बुद्धिजीवी रोहिंग्या मुसलमानों की चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं. उनके समर्थन से २ रोहिंग्या मुसलमानों ने भारत के सुप्रीम कोर्ट में भारत ने बाहर ना निकले जाने के लिए एक याचिका लगाई है.


ROHINGYA


भारत में लगभग ४० हज़ार रोहिंग्या मुस्लिम विभिन्न शहरों में रह रहे हैं, जिनमे से १७००० के पास सयुंक्त राष्ट्र का शरणार्थी पहचान पत्र है. कश्मीर में जहां लाखों कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार कर उन्हें वहां से भागने पर मजबूर कर दिया गया, उसी कश्मीर में हजारों रोहिंग्या बिना किसी परेशानी के रह रहे हैं.


भारत में उनकी करुणदायक कहानी बुद्धिजीवी अपने प्रचारतंत्र के माध्यम से आम जनता में उनके प्रति सहानभूति पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उनमें से कोई भी रोहिंग्या को बर्मा से भगाये जाने का कारण नहीं बता रहा है.


बर्मा जो कि एक बौद्ध राष्ट्र है और बौद्ध अहिंसा के पुजारी माने जाते हैं, वहां से रोहिंग्या क्यों भगाये जा रहे हैं, इसका समुचित कारण जानना होगा. क्या कारण है कि रोहिंग्या को ५६ इस्लामिक राष्ट्रों ने भी अपनाने से इंकार कर दिया है.


रोहिंग्या मुस्लिमों को म्यांमार की सरकार अपना नागरिक नहीं मानती है. १९८२ के बर्मा नागरिक कानून के मुताबिक १३५ नस्लों को बर्मा की नागरिकता दी गयी.रो हिंग्या मुस्लिम १९८२ के कानून के मुताबिक बर्मा के नागरिक नहीं माने गए हैं, इन्हें बांग्लादेश का नागरिक माना गया है.


ये मुख्यतः बर्मा के अराकान प्रान्त में रहते आये हैं. अब इस प्रान्त को राखिन के नाम से भी जाना जाता है. यहां पर रोहिंग्या की कुल आबादी १० से १३ लाख का 90% हिस्सा रहता था. ९ लाख रोहिंग्या बांग्लादेश भाग गए हैं और १-२ लाख दूसरे देशो में. अब केवल लगभग १ लाख के करीब ही रोहिंग्या म्यांमार में बचे हैं.


रोहिंग्या मुसलमान आराकान प्रान्त में सदियों से रहते आये हैं. ८-९ सदी में अरब व्यापारियों के साथ इस्लाम भी इस प्रान्त में आया. बर्मा के मारूक राजघराने के राज में इन्हें कई उच्च पद प्राप्त थे. बंगाल के नवाब की सहायता से ही ये राजघराना वहां का राज्य हथियाने में सफल रहा था.


इसके सिक्कों पर एक तरफ स्थानीय तो दूसरी तरफ फ़ारसी में लिखा रहता था. इनकी जनसंख्या १७वीं शताब्दी में तेजी से बढ़ी. जब आरकानी और पुर्तगाली लोगों ने बंगाल पर हमले शुरू किये और वहां से इन्हें गुलामों के रूप में लेकर आये. औरंगजेब ने शाइस्ता खान को इन्हें सबक सिखाने को भेजा.


शाइस्ता खान ने ६००० की सेना और २८८ लड़ाकू जहाजों के साथ मरुख राज के चिटगांव बंदरगाह पर कब्ज़ा कर लिया. कलादान नदी तक मुग़ल हुकूमत कायम कर दी गयी.


मुग़ल हुकूमत में जब औरंगजेब की लड़ाई अपने भाइयों से हिन्दुस्तान की बादशाहत हासिल करने के लिए हुई, तब शाह सुजा से उसका युद्ध हुवा जो इतिहास में खंजवा की लड़ाई के नाम से प्रसिद्द है. इस युद्ध में औरंगजेब विजय रहा और शाह सुजा ने भागकर आराकान में ही शरण ली थी.


रोहिंग्या मुसलमानों का आराकान के स्थानीय बर्मी लोगों से संघर्ष की शुरुआत 1936 में तब हुई, जब पाकिस्तान आंदोलन के समर्थन में आराकान के मुस्लिम नेताओं ने एक पार्टी उत्तर आराकान मुस्लिम लीग की स्थापना की तथा मोहम्मद अली जिन्ना से इसे पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की गुजारिश की.


दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानियों ने ब्रिटिश बर्मा पर हमला बोल दिया. ब्रिटिश फौजें यहां से पीछे हट गयीं. आराकान के बर्मी जापान के समर्थन में थे, जबकि रोहिंग्या मुस्लिम ब्रिटिश के समर्थन में थे.


ब्रिटिश फौजों ने रोहिंग्या को जापानियों से लड़ने के लिए हथियार मुहैया करवाये. लेकिन रोहिंग्या मुस्लिमों ने उसका इस्तेमाल स्थानीय बर्मी जनता के खिलाफ किया. १९४२ में आराकान प्रान्त में भयानक नरसंहार हुआ, जिसमें २०००० बर्मी मार डाले गए.


प्रतिउत्तर में बर्मी लोगों ने ५००० रोहिंग्या मुस्लिमों को मार डाला. पूरे बर्मा में रोहिंग्या को दंड स्वरूप मारा गया. २५ हज़ार रोहिंग्या ब्रिटिश बंगाल भाग गए. फिर इन्होंने १९४६ में जिन्ना के समर्थन में कलकत्ता में भी स्थानीय मुसलमानों के साथ मिलकर भारी कत्लेआम मचाया. ब्रिटिश भारत को इनको शरण देने की भरी कीमत चुकानी पड़ी. 4000 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और भारत में कई जगह दंगे भड़क गए, जिसकी परिणीति भारत के दो टुकड़े हो गए.


१९४८ से ही रोहिंग्या अपने लिए एक स्वशासित प्रान्त की मांग कर रहे थे. १९६० में तत्कालीन प्रधानमंत्री उनुस ने आराकान को एक प्रान्त का दर्जा दिया था. १९६२ में बर्मा में सैन्य विद्रोह के बाद हालात बदल गए और १९८२ के नागरिकता कानून में रोहिंग्या से नागरिकता छीन ली गयी. इसके लिए १९७१ से १९७८ के बीच बौद्ध साधुवों ने कई बार आन्दोलन चलाया था.


१९४७ में जिन्ना के इंकार के बाद रोहिंग्या ने एक मुजाहिद पार्टी का गठन किया था, जिसका उद्देश्य आराकान को एक मुस्लिम राष्ट्र बनाना था. मुजाहिदीनों ने कई बार वहां की सेना और जनता पर हमले किये. मुस्लिमों ने बाद में कई हथियार बंद संगठन बनाये और और सेना ने इनके खिलाफ कई अभियान  भी चलाये हैं.


हरकत ऐ यक़ीन या अरकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी नमक आतंकी संगठन ने ९ अक्टूबर २०१६ में ३ बर्मी बॉर्डर पोस्ट पर हमला किया. इस हमले में ९ बॉर्डर अफसर मारे गए. तीसरे दिन ११ अक्टूबर को ४ सैनिक भी मारे गए. कुल १३४ लोग इस हमले में मारे गए, जिसमें से १०२ हमलावर और ३२ सैन्य बल के लोग शामिल थे.


इसके बाद म्यांमार की सेना ने कड़ी कार्यवाई करते हुए संदिग्धों की धरपकड़ के लिए एक व्यापक सैन्य अभियान शुरू कर दिया है. जिसके डर से लाखों रोहिंग्या बर्मा छोड़ कर भाग रहे हैं.


यहां एक महत्वूर्ण शख़्स संत विराथु के बिना रोहिंग्या पर चर्चा अधूरी है. म्यांमार में रोहिंग्या के अत्याचार के खिलाफ लोगों को जागरूक करने वाले और रोहिंग्या को आज इस हालत में लाने वाले यही शख़्स है. इन्होंने रोहिंग्या के जिहाद की सच्चाई से वहां की शांतिप्रिय बौद्ध जनता को बताई.


बिना किसी सरकारी सहायता के अपने भाषणों की कद और ऑडियो म्यांमार के हर कोने तक पहुंचवाई, जिसमें ये जेहाद के सच्च्चाई से जनता को अवगत कराते रहते हैं. 2001 में इन्होंने “अभियान-९६९” चलाया था. जिसमें इनके समर्थक वहीं से सामान खरीदते थे, जहां से ९६९ लिखा होता था. यह व्यापार से मुसलमानों के बहिष्कार का अभियान था.


इससे मुसलमानों की कमर टूट गयी और पैसे के बिना जेहाद को चलाना काफी मुश्किल साबित हुआ. इन्होंने एक प्रसिद्ध बात बोली कि “आदमी कितना भी शांतिप्रिय हो लेकिन पागल कुत्तों के साथ तो नहीं सो सकता”.


२०१२ में मुस्लिमों ने एक बौद्ध महिला का बलात्कार करके उसकी हत्या कर दी, जिसके बाद शांतिप्रिय बौद्धों ने भी हथियार उठा लिए. पूरे देश में मुस्लिम और रोहिंग्या विरोध की एक लहर चल पड़ी. बौद्धों और मुस्लिमों में कट्टर शत्रुता पैदा हो गयी, जिसका खामियाजा आज रोहिंया भुगत रहे हैं.


आज भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनाफा देकर रोहिंग्या मुस्लिमों को देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताया है. भारत सरकार ने यह भी बताया की ये कट्टरवादी हैं और पाकिस्तान की कुख्यात ख़ुफ़िया एजेंसी ISI ने हजारों रोहिंग्या नौजवानों को हथियार और कट्टरपन की ट्रेनिंग दी है.


भारत सरकार का कदम बिलकुल सही और दूरदर्शितापूर्ण है. इसी वजह से कोई मुस्लिम देश भी इन्हें अपने यहां शरण नहीं देना चाहता है. अभी कुछ दिनों पहले हुए लन्दन बम धमाकों में एक सीरियन शरणार्थी पकड़ा गया है, जिसे ब्रिटेन में मानवीय आधार पर शरण मिली थी.


कई आतंकवादी और उनके समर्थक विभिन्न देशों में इसी तरह घुसपैठ कर उस देश में जिहाद की दूषित मानसिकता फैला रहे हैं. भारत में जहां पहले से ही बांग्लादेश से आये लगभग २ करोड़ अवैध शरणार्थी रह रहे हैं. वहां और मुस्लिम शरणार्थी किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं हैं.


भारतीयों को यूरोप और म्यांमार की घटनाओं से सबक लेते हुए देश की सरकार और सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाये रखना होगा और रोहिंग्या को देश में किसी भी आधार पर घुसपैठ की इजाजत नहीं देने देना होगा.

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