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“क्या ये सच है कि कहीं खजाना निकला है?”
अब बात ये है कि आखिर ये खजाना जो कि सुनने में आया है कि निकलने वाला है, निकलेगा या नही; ये मैं नही जानता। बस इसीलिए आपसब के सामने आ गया अपना एक प्रश्न लेकर – “क्या ये सच है कि कहीं खजाना निकला है?”
अब अगर आप पूरा लेख पढेंगें तो शायद आप जवाब पूर्ण तरीके से दें पायेंगें –
बहुत चर्चा में चल रहा है आज-तक अरेर र र … माफ़ करना “आज-तक” नहीं “आज-कल” हर जगह; चाहे वो कोई-सा भी गलियारा हो, खबर सबसे-तेज हर गलियारे पहुचती है। अब गलियारे की बात हो तो गाँव-घर वाले गलियारे में इतना शोर-शराबा नहीं होता, जितना की राजनीतिक गलियारे में होता है। यह एक ऐसा गलियारा है –
“ जहाँ लोगों की बातें बदल जाती हैं,लोगों के
बदलते ही।
बात भी यहाँ बदल जाती है, पार्टी लोगों की
बदलते ही।
अर्थ बातों का ही बदल देतें हैं लोग, भूगोल
बदलकर।
राजा बन जाते हैं; नेता पार्टी के, बिगड़ी बात
बनाकर।
जनता के वोट का रुख मोड़ देते हैं, मंच पर
आकर।
जनता के नोट का रुख मोड़ देते है, मंच से
जाकर। ”
-राघवेन्द्र सिंह
सपनें मैनें भी बहुत से देखें, पर कुछ पूरे हुए, कुछ नहीं कुछ के लिए कोशिश कर रहा हूँ। अब यहाँ पर भी एक सपना ही है, जो किसी अच्छे इंसान ने देखा है, ऐसा मीडिया में कहा जा रहा है। उस अच्छे इन्सान को मेरा प्रणाम; और अब प्रणाम उस बाबा को, जिन्होंने सपना नही देखा और जब नहीं देखा था तो बोल देते कि देखा है –
एक सपना कि काला-गोरा प्रकार का कुछ खजाना जो भारत के कई (अब के राजा-मन्त्री जैसाकि कहा जाता है का) राजा और मन्त्री का; कहीं बहुत बड़ी सुरक्षा में रखा है। और फिर सरकार वहाँ से वो खजाना भी खुदवा लेती, पर वो बाबा गलती कर गये और उन बाबा के खुद के खजाने की खोज का आदेश हो गया और खोज हो रही है।
या तो अब ऐसा भी हो सकता है कि वो खजाना काला-गोरा जो भी है, सरकार के कुछ लोगों (चाहे वो सरकार में हों या न हों) का ही हो, इसीलिए उसको खोद के निकाला नही जा रहा; और ये, जो खजाना है ‘ ये इनका नहीं है, तो उसे इनका बनानें के लिए ’ खोद-निकाला जा रहा है। यहाँ एक बात और भी है कि वो जो काले-गोरे प्रकार वाले खजाने का पता बताने वाले बाबा ने सरकार से उस खजाने से देश-भर के विकास की बात कही थी, और यहाँ पर सरकार ने खजाने वाले क्षेत्र के विकास की। ये क्षेत्र जो सरकार कह रही है, मैं नहीं जानता कि कितना बड़ा होता है। क्या आप जानते है इस सरकार के तथाकथित क्षेत्र विकास के बारें में ? कहीं ऐसा तो नहीं, ये विकास का क्षेत्र सरकार के कुछ लोगों की जेब तक हो; और ये पीले-सफ़ेद प्रकार का खजाना, काले-गोरे प्रकार के खजाने में मिलने चला जाये।
इसीलिए प्रश्न कर रहा था और कर रहा हूँ – “क्या ये सच है कि कहीं खजाना निकला है ?”
ऐसा कुछ भी हो तो हमें भी बता देना, हमारा ननिहाल भी उधर उन्नाव में ही पड़ता है। हम भी देख आयेंगें ये बदलाव – विकास का/खजाने खा-जाने का।
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