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खुली आँखों से आज सपने देख रहा था यारों,
करवटों में आखिरी रात इस साल की गुजार रहा था यारों।
कुछ खट्टी-कुछ मीठी यादों को समेट रहा था,
और पुराने कैलेण्डर को देख सोच रहा था।
पुराना साल जा और नया साल आ रहा था,
नया साल फिर से एक आस सी जगा रहा था।
खुली आँखों से आज सपने देख रहा था यारों,
करवटों में आखिरी रात इस साल की गुजार रहा था यारों।
उस पुराने साल से थोड़ी सी नाराज़गी भी थी,
दोस्त और प्यार दिया जिससे खुशहाली भी थी।
सब को छोड़ना पड़ा ये उसी साल की महेरबानी थी,
फिर भी इस नए साल के आने से ताजगी सी थी।
खुली आँखों से आज सपने देख रहा था यारों,
करवटों में आखिरी रात इस साल की गुजार रहा था यारों।
जो दुःख मिला बीते साल में उसका हिसाब ना किया,
सुख की वजह से दुःख, दुःख की वजह से सुख, लिया-दिया,
आया-गया, इन किसी का हिसाब भी ना किया,
बस पुराने साल से मिली नई सीखों का हिसाब किया।
खुली आँखों से आज सपने देख रहा था यारों,
करवटों में आखिरी रात इस साल की गुजार रहा था यारों।
बस फिर क्या था सभी के मुस्कराते चेहरे याद आ गये,
और सभी के नये साल के आगमन के सन्देश आ गये।
और फिर से जिन्दगी में खुशी के बादल छा गये,
‘राघवेन्द्र’ हम फिर से नये साल का सन्देश लेकर आ गये।
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