यूपीए-2 सरकार की नाकामियों के लिए मनमोहन ही जिम्मेदार क्यों ?
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नाकामियों को लेकर ‘पुस्तक-युद्ध’ जारी है। संजय बारू के बाद अब पूर्व CAG विनोद राय ने भी अपनी किताब ‘NOT JUST AN ACCOUNTANT’ में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सवालों के घेरे खड़ा किया है। इस किताब के मुताबिक मनमोहन सिंह का अपनी सरकार पर नियंत्रण नहीं था, उन्होंने गठबंधन की सरकार के आगे घुटने टेक दिए थे।
यहाँ पर विचार करने योग्य दो प्रश्न है पहला ये कि सारी किताबें मनमोहन सिंह पर ही क्यों लिखी जा रही है? और दूसरा ये कि क्या ये संभव है कि गठबंधन की सरकार में कोई भी प्रधानमंत्री निर्बाध तरीके से अपनी योजनाओ और विचारों का क्रियान्वयन कर सके ?
बकौल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहरी बाजपेई के शब्दों में “गठबंधन की सरकार में कोई भी प्रधानमंत्री स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकता”। शायद इसीलिए आज तक भाजपा राम मंदिर के अपने वायदे को पूरा न कर पाने के लिए अटल सरकार में शामिल अन्य राजनैतिक दलों को जिम्मेदार ठहरती आ रही है। ऐसे में यूपीए सरकार की नाकामियों को लेकर अकेले मनमोहन सिंह को जिम्मेदार ठहराना कहाँ तक उचित है?
गठबंधन में बनी सरकार की अपनी कई आन्तरिक मजबूरियां होती है जिन्हें अनदेखा कर पाना किसी भी प्रधानमंत्री के लिए संभव नहीं है। सरकार में शामिल कई अन्य राजनैतिक दल केवल इतने के लिए सरकार को समर्थन देते है कि वो सरकार को बलैक्मैल कर अपना काम निकलवा सकें। ऐसे में यदि प्रधानमंत्री उसकी बातो को नहीं सुनता है तो वो उस दल को ब्लैकमेल करना शुरू करते हैं जिसका नेता बतौर प्रधानमंत्री गठबंधन की सरकार को चला रहा होता है। ऐसे में सरकार गिरने के डर से वो दल स्वयं अपने प्रधानमंत्री पर ये दबाव बनाने लगता है कि वो गठबंधन में शामिल दलों की बात सुने और उनके आगे घुटने टेके।
आज अगर नरेन्द्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री बेधड़क फैसले ले रहे है तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि वे पूर्ण बहुमत की सरकार चला रहे हैं न कि गठबंधन की सरकार।
यद्यपि कीएक सत्य यह भी है कि जितना यूपीए-2 कीसरकार में हुआ उतना यूपीए
वास्तव में यूपीए सरकार की नाकामियों के लिए मनमोहन सिंह से ज्यादा कांग्रेस और वे राजनैतिक दल जिम्मेदार है जो इस सरकार में शामिल थे। अपने निज स्वार्थों की पूर्ति के लिए इन लोगो ने पूरी सरकार का मतलब ही बदल दिया था और अब बलि का बकरा किताबों के माध्यम से मनमोहन सिंह को बनाया जा रहा है। किताब लिखने वाले सभी लेखक कांग्रेस और गठबंधन में शामिल दलों की नाकामियों को उजागर करने के बजाय सीधा मनमोहन सिंह पर आक्रामक हो रहे है।
दरअसल ये भी एक सोची समझी रणनीत का हिस्सा है। किताब लिखने वाले ज्यादातर लेखक अच्छी तरह से जानते है कि कांग्रेस आज भले सत्ता से बहार हो गयी हो पर कभी न कभी सत्ता में जरुर लौटेगी ऐसे में कांग्रेस को सीधा टारगेट करने मतलब सत्ता की मलाई से हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाना।
अब जाहिर सी बात है लेखक बना कोई भी नेता या नौकरशाह ऐसा नहीं चाहेगा। लिहाजा किताब लिखने वाले सभी लेखक कांग्रेस से ज्यादा मनमोहन सिंह को टारगेट करना ज्यादा मुफीद समझ रहे है क्योकि मनमोहन सिंह अब दोबारा कांग्रेस के नेत्रत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री बने इसकी संभावना बिल्कुलना ना के बराबर है।
एक बात और किताब लिखने वाले ज्यादातर लेखक रिटायर्ड और कांग्रेस पसंद नौकरशाह है ऐसे में अभी का समय इन सभी लेखको के लिए ‘आफ सीजन’ जैसा है क्योकि केंद्र में मोदी की सरकार है और मोदी सरकार में इनकी दाल गले ये संभव नहीं है। लिहाजा खाली समय काटने के लिए भी ये किताब लिख रहे है। किताब का नाम मनमोहन सिंह इसलिए रखा जाता है क्योकि इससे पब्लिसिटी मिलने की सम्भावना ज्यादा रहती है और कांग्रेस से रिश्तें ख़राब होने की काफी कम।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नाकामियों को लेकर ‘पुस्तक-युद्ध’ जारी है। संजय बारू के बाद अब पूर्व CAG विनोद राय ने भी अपनी किताब ‘NOT JUST AN ACCOUNTANT’ में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सवालों के घेरे खड़ा किया है। इस किताब के मुताबिक मनमोहन सिंह का अपनी सरकार पर नियंत्रण नहीं था, उन्होंने गठबंधन की सरकार के आगे घुटने टेक दिए थे।
यहाँ पर विचार करने योग्य दो प्रश्न है पहला ये कि सारी किताबें मनमोहन सिंह पर ही क्यों लिखी जा रही है? और दूसरा ये कि क्या ये संभव है कि गठबंधन की सरकार में कोई भी प्रधानमंत्री निर्बाध तरीके से अपनी योजनाओ और विचारों का क्रियान्वयन कर सके ?
बकौल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहरी बाजपेई के शब्दों में “गठबंधन की सरकार में कोई भी प्रधानमंत्री स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकता”। शायद इसीलिए आज तक भाजपा राम मंदिर के अपने वायदे को पूरा न कर पाने के लिए अटल सरकार में शामिल अन्य राजनैतिक दलों को जिम्मेदार ठहरती आ रही है। ऐसे में यूपीए सरकार की नाकामियों को लेकर अकेले मनमोहन सिंह को जिम्मेदार ठहराना कहाँ तक उचित है?
गठबंधन में बनी सरकार की अपनी कई आन्तरिक मजबूरियां होती है जिन्हें अनदेखा कर पाना किसी भी प्रधानमंत्री के लिए संभव नहीं है। सरकार में शामिल कई अन्य राजनैतिक दल केवल इतने के लिए सरकार को समर्थन देते है कि वो सरकार को बलैक्मैल कर अपना काम निकलवा सकें। ऐसे में यदि प्रधानमंत्री उसकी बातो को नहीं सुनता है तो वो उस दल को ब्लैकमेल करना शुरू करते हैं जिसका नेता बतौर प्रधानमंत्री गठबंधन की सरकार को चला रहा होता है। ऐसे में सरकार गिरने के डर से वो दल स्वयं अपने प्रधानमंत्री पर ये दबाव बनाने लगता है कि वो गठबंधन में शामिल दलों की बात सुने और उनके आगे घुटने टेके।
आज अगर नरेन्द्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री बेधड़क फैसले ले रहे है तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि वे पूर्ण बहुमत की सरकार चला रहे हैं न कि गठबंधन की सरकार।
वास्तव में यूपीए सरकार की नाकामियों के लिए मनमोहन सिंह से ज्यादा कांग्रेस और वे राजनैतिक दल जिम्मेदार है जो इस सरकार में शामिल थे। अपने निज स्वार्थों की पूर्ति के लिए इन लोगो ने पूरी सरकार का मतलब ही बदल दिया था और अब बलि का बकरा किताबों के माध्यम से मनमोहन सिंह को बनाया जा रहा है। किताब लिखने वाले सभी लेखक कांग्रेस और गठबंधन में शामिल दलों की नाकामियों को उजागर करने के बजाय सीधा मनमोहन सिंह पर आक्रामक हो रहे है।
दरअसल ये भी एक सोची समझी रणनीत का हिस्सा है। किताब लिखने वाले ज्यादातर लेखक अच्छी तरह से जानते है कि कांग्रेस आज भले सत्ता से बहार हो गयी हो पर कभी न कभी सत्ता में जरुर लौटेगी ऐसे में कांग्रेस को सीधा टारगेट करने मतलब सत्ता की मलाई से हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाना।
अब जाहिर सी बात है लेखक बना कोई भी नेता या नौकरशाह ऐसा नहीं चाहेगा। लिहाजा किताब लिखने वाले सभी लेखक कांग्रेस से ज्यादा मनमोहन सिंह को टारगेट करना ज्यादा मुफीद समझ रहे है क्योकि मनमोहन सिंह अब दोबारा कांग्रेस के नेत्रत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री बने इसकी संभावना बिल्कुलना ना के बराबर है।
एक बात और किताब लिखने वाले ज्यादातर लेखक रिटायर्ड और कांग्रेस पसंद नौकरशाह है ऐसे में अभी का समय इन सभी लेखको के लिए ‘आफ सीजन’ जैसा है क्योकि केंद्र में मोदी की सरकार है और मोदी सरकार में इनकी दाल गले ये संभव नहीं है। लिहाजा खाली समय काटने के लिए भी ये किताब लिख रहे है। किताब का नाम मनमोहन सिंह इसलिए रखा जाता है क्योकि इससे पब्लिसिटी मिलने की सम्भावना ज्यादा रहती है और कांग्रेस से रिश्तें ख़राब होने की काफी कम।
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