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जनता के नाम पर जनता के हितों को ही कुचलता है विपक्ष

anurag
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जब भी विधानसभा/ संसद का कोई भी सत्र आहूत किया जाता है तो उससे पहले एक सर्वदलीय बैठक सदन के अध्यक्ष द्वारा बुलाई जाती है जिसमे अध्यक्ष विपक्ष से सदन को सुचारू रूप से चलाये जाने के लिए सहयोग की अपील। अध्यक्ष की अपील पर विपक्ष के सभी नेता एक मत होकर ये वादा करते है कि वो सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने में अपना पूरा सहयोग देंगे। पर अगले ही दिन जैसे सदन कार्यवाही शुरू होती ये विपक्षी नेता अपनी बातों से पलट जाते है और सत्ता पक्ष के खिलाफ जोरदार नारेबाजी करने लगते है।
कुछ ऐसी ही तस्वीर आज यूपी विधानसभा के बजट सत्र में देखने को मिली।18 जून को बुलायी गयी सर्वदलीय बैठक में बीजेपी को छोड़कर लगभग सभी विपक्षी नेताओं ने सदन के कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाये जाने में अपने सहयोग का वादा विधानसभा अध्यक्ष से किया था। पर आज जैसे ही बजट सत्र की कार्यवाही शुरू हुई पूरा विपक्ष नई नवेली जीत से इतराई बीजेपी के लय में रमा दिखा। टूट गए वो वादे जो एक दिन पहले इसी विधानसभा के अंदर इन विपक्षी नेताओं ने विधानसभाध्यक्ष से किये थे। इन नेताओं के हाथ में सरकार विरोधी तख्तियां थी और ये खड़े थे अध्यक्ष के आसन के सामने। इनके नारो में एक नारा जो ये बार-बार लगा रहे थे वो था ‘जो सरकार निकम्मी है वो सरकार बदलनी है’।
ऐसी में दो महत्वपूर्ण सवाल यहाँ खड़े हो रहे है जिन पर चर्चा करना आवश्यक है पहला ये कि क्या हंगामे की इन परिस्थितियों में सत्र बुलाये जाने से पहले होने वाली सर्वदलीय बैठक को बुलाया जाना जायज है? और दूसरा ये कि क्या वास्तव में विपक्ष इतना सशक्त है कि वो जनता द्द्वरा निर्वाचित पूर्ण बहुमत की सरकार को सदन के अंदर हंगामा (अराजकता) फैला कर बर्खाश्त करा सकें? इन दोनों सवालों पर चर्चा इसलिए भी आवश्यक है क्योकि हंगाम हिन्दुस्तान के हर सदन की नियति बन चूका है फिर चाहे वो संसद हो या फिर राज्यों की विधानसभा। हर जगह सत्र के दौरान काम से ज्यादा हंगामा नजर आता है।
वास्तव में अब विपक्ष में बैठे हर राजनैतिक दल का एक ही उद्देश्य होता कि हार हाल में सत्ता पक्ष की आलोचना करो चाहे जितने ही अच्छे काम सत्ता पक्ष ने किये हो। और यही काम उत्तर प्रदेश की विधानसभा में बैठा विपक्ष कर रहा है वो हर हाल में अखिलेश सरकार को घेरना चाहता है भले उसकी बलिवेदी पर आम जनता से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे बलि चढ़ जाएँ। विपक्ष हमेशा सदन के अंदर ये दिखाने की कोशिश करता है कि वो जनता के लिए लड़ रहा है पर सच तो ये है कि वो स्वः हित के लिए आम जनता के ही हितों को ही कुचलता है।
जब भी सरकार विधानसभा का सत्र बुलाती है खासकर ‘बजट सत्र’ तो उस सत्र से आम जनता को बहुत उम्मीदें होती। उसे उम्मीद होती है कि सरकार के इस बजट में कुछ न कुछ उसके लिए भी होगा जिसकी घोषणा वो सदन के अंदर करेगी पर जब विरोधियों के हंगामे के चलते सत्ता पक्ष अपनी बात नहीं रख पाता तो सबसे पहले उम्मीद उसी जनता की टूटती है जिसने उसे सत्ता के शीर्ष तक पहुचाया है। पर विपक्ष को क्या फर्क पड़ता है उसका का तो एक ही मकसद है जनहित के नाम पर जनहित के कामो को होने से रोको और हर हाल में सरकार की साख पर बट्टा लगाओ।
पर जनता के मूर्ख समझने वाले ये विपक्षी दाल ये भूल जाते है कि जनता सब कुछ समझती है और इसलिए तुमको सत्ता से बहार कर देती। सदन के अंदर निर्वाचित सरकार को बदलने की बात करने वाले विपक्षी दल ये क्यों भूल जाते है कि ये जनता का दवारा निर्वाचित सरकार है जिसे बदलने की ताक़त सम्पूर्ण विपक्ष में नहीं है। फिर भी ये हंगामा करते है क्योकि हंगामा करना ही इनकी नियति है।
जहाँ तक बात सत्र के पहले होने वाली सर्वदलीय बैठक की है तो हंगामों के इस दौर में ऐसी बैठके नहीं होनी चाहिए क्योकि ऐसी बैठके बुलायी तो जाती है सदन को सुचारू रूप से चलाये जाने के लिए लेकिन होता इससे ठीक विपरीत है। लिहाजा कही न कही इससे सदन की गरिमा को ठेस पहुचती है जो किसी भी रूप में जायज नहीं है।

जब भी विधानसभा/ संसद का कोई भी सत्र आहूत किया जाता है तो उससे पहले एक सर्वदलीय बैठक सदन के अध्यक्ष द्वारा बुलाई जाती है जिसमे अध्यक्ष विपक्ष से सदन को सुचारू रूप से चलाये जाने के लिए सहयोग की अपील। अध्यक्ष की अपील पर विपक्ष के सभी नेता एक मत होकर ये वादा करते है कि वो सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने में अपना पूरा सहयोग देंगे। पर अगले ही दिन जैसे सदन कार्यवाही शुरू होती ये विपक्षी नेता अपनी बातों से पलट जाते है और सत्ता पक्ष के खिलाफ जोरदार नारेबाजी करने लगते है।

कुछ ऐसी ही तस्वीर आज यूपी विधानसभा के बजट सत्र में देखने को मिली।18 जून को बुलायी गयी सर्वदलीय बैठक में बीजेपी को छोड़कर लगभग सभी विपक्षी नेताओं ने सदन के कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाये जाने में अपने सहयोग का वादा विधानसभा अध्यक्ष से किया था। पर आज जैसे ही बजट सत्र की कार्यवाही शुरू हुई पूरा विपक्ष नई नवेली जीत से इतराई बीजेपी के लय में रमा दिखा। टूट गए वो वादे जो एक दिन पहले इसी विधानसभा के अंदर इन विपक्षी नेताओं ने विधानसभाध्यक्ष से किये थे। इन नेताओं के हाथ में सरकार विरोधी तख्तियां थी और ये खड़े थे अध्यक्ष के आसन के सामने। इनके नारो में एक नारा जो ये बार-बार लगा रहे थे वो था ‘जो सरकार निकम्मी है वो सरकार बदलनी है’।

ऐसी में दो महत्वपूर्ण सवाल यहाँ खड़े हो रहे है जिन पर चर्चा करना आवश्यक है पहला ये कि क्या हंगामे की इन परिस्थितियों में सत्र बुलाये जाने से पहले होने वाली सर्वदलीय बैठक को बुलाया जाना जायज है? और दूसरा ये कि क्या वास्तव में विपक्ष इतना सशक्त है कि वो जनता द्द्वरा निर्वाचित पूर्ण बहुमत की सरकार को सदन के अंदर हंगामा (अराजकता) फैला कर बर्खाश्त करा सकें? इन दोनों सवालों पर चर्चा इसलिए भी आवश्यक है क्योकि हंगाम हिन्दुस्तान के हर सदन की नियति बन चूका है फिर चाहे वो संसद हो या फिर राज्यों की विधानसभा। हर जगह सत्र के दौरान काम से ज्यादा हंगामा नजर आता है।

वास्तव में अब विपक्ष में बैठे हर राजनैतिक दल का एक ही उद्देश्य होता कि हार हाल में सत्ता पक्ष की आलोचना करो चाहे जितने ही अच्छे काम सत्ता पक्ष ने किये हो। और यही काम उत्तर प्रदेश की विधानसभा में बैठा विपक्ष कर रहा है वो हर हाल में अखिलेश सरकार को घेरना चाहता है भले उसकी बलिवेदी पर आम जनता से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे बलि चढ़ जाएँ। विपक्ष हमेशा सदन के अंदर ये दिखाने की कोशिश करता है कि वो जनता के लिए लड़ रहा है पर सच तो ये है कि वो स्वः हित के लिए आम जनता के ही हितों को ही कुचलता है।

जब भी सरकार विधानसभा का सत्र बुलाती है खासकर ‘बजट सत्र’ तो उस सत्र से आम जनता को बहुत उम्मीदें होती। उसे उम्मीद होती है कि सरकार के इस बजट में कुछ न कुछ उसके लिए भी होगा जिसकी घोषणा वो सदन के अंदर करेगी पर जब विरोधियों के हंगामे के चलते सत्ता पक्ष अपनी बात नहीं रख पाता तो सबसे पहले उम्मीद उसी जनता की टूटती है जिसने उसे सत्ता के शीर्ष तक पहुचाया है। पर विपक्ष को क्या फर्क पड़ता है उसका का तो एक ही मकसद है जनहित के नाम पर जनहित के कामो को होने से रोको और हर हाल में सरकार की साख पर बट्टा लगाओ।

पर जनता के मूर्ख समझने वाले ये विपक्षी दाल ये भूल जाते है कि जनता सब कुछ समझती है और इसलिए तुमको सत्ता से बहार कर देती। सदन के अंदर निर्वाचित सरकार को बदलने की बात करने वाले विपक्षी दल ये क्यों भूल जाते है कि ये जनता का दवारा निर्वाचित सरकार है जिसे बदलने की ताक़त सम्पूर्ण विपक्ष में नहीं है। फिर भी ये हंगामा करते है क्योकि हंगामा करना ही इनकी नियति है।

जहाँ तक बात सत्र के पहले होने वाली सर्वदलीय बैठक की है तो हंगामों के इस दौर में ऐसी बैठके नहीं होनी चाहिए क्योकि ऐसी बैठके बुलायी तो जाती है सदन को सुचारू रूप से चलाये जाने के लिए लेकिन होता इससे ठीक विपरीत है। लिहाजा कही न कही इससे सदन की गरिमा को ठेस पहुचती है जो किसी भी रूप में जायज नहीं है।

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