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पथ भ्रमित युवा शक्ति अखंड राष्ट्र के लिए एक गंभीर खतरा

anurag
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हम अक्सर ही बाहरी मुल्क से हिन्दुस्तान पर खतरा होने की बात करते है। कभी आतंकवाद के नाम पर पाक को कोसते है तो कभी सीमा विवाद के मसले पर चीन पर हमला बोलते है पर इन सबसे अलग अब एक ऐसी तस्वीर भी हिन्दुस्तान में बनती दिख रही जो कही न कही आजाद हिन्दुतान की अखंडता और एकता के लिए एक खतरा बनती जा रही है।
मौजूदा समय जातीयता, धार्मिकता और राष्ट्रीयता के नाम पर उन्माद की ऐसी आंधी चल रही जो अगर अपने पूरे सबब पर आ गयी तो सबसे बड़े विनाश का कारक बनेगी। सबसे ज्यादा चिंता का विषय ये है कि उन्माद की ये लहर अभी तक गावों और कस्बों तक सीमित थी। देश का शहरी वर्ग इन सारी चीजों से अलग था वो केवल अपनी कर्म साधना पर यकीन रखता था और भाई-भाई के सिद्धांतों पर चलता था। पर अब हालात बदल चुकें है।
अब उन्माद की ये लहर शहरों में भी आमद दे चुकी है, विशेषकर उन युवाओं में जिनकी औसत आयु 25 से 35 है और जो हर तरह की अत्याधुनिक सुविधाओं से लैश है जिसमे फेसबुक से लेकर स्मार्ट फ़ोन तक शामिल है।
पिछले दिनों जिस तरह ये युवा आधुनिक युग में अभिव्यक्ति के सबसे बड़े माध्यम सोशल साइटों पर जाती धर्म और राष्ट्रीयता के नाम एक दूसरे की अलोचना करते आये है, वो एक खतरनाक स्थिति की तरफ इशारा करती है।
आलोचना अगर वैचारिक मतभेदों पर आधरित हो बात काफी हद तक बात समझ में आती है। पर अगर आलोचना का उद्देश्य किसी धरम, वर्ग को नीचा दिखाना, उसे अपमानित करना है तो निश्चित तौर पर ये एक चिंता का विषय है। चिंता इस बात की जानी चाहिए कि अगर ऐसी ही हमारी युवा शक्ति पथ भ्रमित होती रही तो विकसित भारत का हमारा सपना कैसे पूरा होगा ? क्योकि विकसित भारत का सपना तो तभी पूरा होगा जब युवा शक्ति संगठित होकर राष्ट्र के विकास में योगदान दें।
पर वर्तमान समय में तो युवा शक्ति का वो बिखरा स्वरुप प्रदर्शित हो रहा है जिसके मूल में राष्ट्रीय, जातीय और धार्मिक मुद्दे ज्यादा पनपते है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है कि इन युवाओं में राष्ट्र के लिए जो मुद्दे अहमियत रखते है उनमे भी कही न कही जाति और धरम का उन्माद शामिल होता है। ऐसी आलोचनाये इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि जिस युवा शक्ति के दम पर हम विकसित भारत का सपना देख रहे है उसकी बुनियाद ही खोखली है। इसलिए जरुरत है खोखली हो चुकी उस बुनियाद को भरने की जिसमे उन्माद रूपी जैसा जहर पनपता है क्योकि किसी भी देश की युवा शक्ति अगर सही दिशा में जाये तो ही वो उस देश के शास्क्तिकरण और उसके विकास के लिए सकरात्मक भूमिका निभाती है अन्यथा वो  विनाश का कारक भी बनती है।
अतः यह आवश्यक है कि राह भटक रही हमारी युवा शक्ति को समय रहते नियंत्रित किया जाये क्योकि अगर ये नियंत्रित न हुई तो आजाद हिन्दुस्तान यानि हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ये विनाश का सबसे बड़ा कारक बनेगी।
अनुराग मिश्र
स्वतंत्र पत्रकार
लखनऊ
मो : 7388111137
हम अक्सर ही बाहरी मुल्क से हिन्दुस्तान पर खतरा होने की बात करते है। कभी आतंकवाद के नाम पर पाक को कोसते है तो कभी सीमा विवाद के मसले पर चीन पर हमला बोलते है पर इन सबसे अलग अब एक ऐसी तस्वीर भी हिन्दुस्तान में बनती दिख रही जो कही न कही आजाद हिन्दुतान की अखंडता और एकता के लिए एक खतरा बनती जा रही है।
मौजूदा समय जातीयता, धार्मिकता और राष्ट्रीयता के नाम पर उन्माद की ऐसी आंधी चल रही जो अगर अपने पूरे सबब पर आ गयी तो सबसे बड़े विनाश का कारक बनेगी। सबसे ज्यादा चिंता का विषय ये है कि उन्माद की ये लहर अभी तक गावों और कस्बों तक सीमित थी। देश का शहरी वर्ग इन सारी चीजों से अलग था वो केवल अपनी कर्म साधना पर यकीन रखता था और भाई-भाई के सिद्धांतों पर चलता था। पर अब हालात बदल चुकें है।
अब उन्माद की ये लहर शहरों में भी आमद दे चुकी है, विशेषकर उन युवाओं में जिनकी औसत आयु 25 से 35 है और जो हर तरह की अत्याधुनिक सुविधाओं से लैश है जिसमे फेसबुक से लेकर स्मार्ट फ़ोन तक शामिल है।
पिछले दिनों जिस तरह ये युवा आधुनिक युग में अभिव्यक्ति के सबसे बड़े माध्यम सोशल साइटों पर जाती धर्म और राष्ट्रीयता के नाम एक दूसरे की अलोचना करते आये है, वो एक खतरनाक स्थिति की तरफ इशारा करती है।
आलोचना अगर वैचारिक मतभेदों पर आधरित हो बात काफी हद तक बात समझ में आती है। पर अगर आलोचना का उद्देश्य किसी धरम, वर्ग को नीचा दिखाना, उसे अपमानित करना है तो निश्चित तौर पर ये एक चिंता का विषय है। चिंता इस बात की जानी चाहिए कि अगर ऐसी ही हमारी युवा शक्ति पथ भ्रमित होती रही तो विकसित भारत का हमारा सपना कैसे पूरा होगा ? क्योकि विकसित भारत का सपना तो तभी पूरा होगा जब युवा शक्ति संगठित होकर राष्ट्र के विकास में योगदान दें।
पर वर्तमान समय में तो युवा शक्ति का वो बिखरा स्वरुप प्रदर्शित हो रहा है जिसके मूल में राष्ट्रीय, जातीय और धार्मिक मुद्दे ज्यादा पनपते है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है कि इन युवाओं में राष्ट्र के लिए जो मुद्दे अहमियत रखते है उनमे भी कही न कही जाति और धरम का उन्माद शामिल होता है। ऐसी आलोचनाये इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि जिस युवा शक्ति के दम पर हम विकसित भारत का सपना देख रहे है उसकी बुनियाद ही खोखली है। इसलिए जरुरत है खोखली हो चुकी उस बुनियाद को भरने की जिसमे उन्माद रूपी जैसा जहर पनपता है क्योकि किसी भी देश की युवा शक्ति अगर सही दिशा में जाये तो ही वो उस देश के शास्क्तिकरण और उसके विकास के लिए सकरात्मक भूमिका निभाती है अन्यथा वो  विनाश का कारक भी बनती है।
अतः यह आवश्यक है कि राह भटक रही हमारी युवा शक्ति को समय रहते नियंत्रित किया जाये क्योकि अगर ये नियंत्रित न हुई तो आजाद हिन्दुस्तान यानि हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ये विनाश का सबसे बड़ा कारक बनेगी।
अनुराग मिश्र
स्वतंत्र पत्रकार
लखनऊ

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