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चुनावो में कभी सेमीफाइनल नहीं होता हमेशा होता है तो फ़ाइनल मैच

anurag
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आखिर वो घडी आ ही गयी जिसका इंतज़ार काफी दिनों से हो रहा था केंद्रीय चुनाव आयोग ने गुजरात और हिमांचल प्रदेश के विधानसभा चुनावो की तारीखे घोषित कर दी और इसी के साथ शुरू हो गया कांग्रेस बनाम भाजपा का सियासी घमासान। इसी क्रम में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने गुजरात में जमकर मोदी सरकार पर निशाना साधा और उसे जनविरोधी बताया। अपने बयान ने सोनिया ने कहा कि मोदी सरकार गरीबो पर गोली चला रही है और इस सरकार के शासनकाल में गरीब किसान आत्महत्या करने पर मजबूर है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब केंद्र में स्थापित कांग्रेस के नेत्र्तव वाली मनमोहन सरकार आम आदमी के हको को छीने में पीछे नहीं है तो कैसे सोनिया गाँधी गुजरात कि मोदी सरकार को जनविरोधी बता सकती है ? जबकि स्वयं कांग्रेस ने जनता पर से अपना विश्वाश खो दिया है. अगर आज तत्काल में लोकसभा के चुनाव करा दीजिये तो पूरे देश से कांग्रेस का पत्ता साफ़ हो जायेगा जिस तरह यूपी विधानसभा चुनाव में हुआ था।
यहाँ एक बात का और उल्लेख करना आवश्यक है वो ये कि मीडिया इस पूरे चुनाव को लोकसभा चुनाव २०१४ का सेमीफ़ाइनल बता रही है। याद कीजिये कुछ इस तरह की बाते मीडिया में यूपी विधानसभा चुनाव २०१२ के समय भी चल रही थी उस समय भी मीडिया यूपी विधानसभा चुनाव को लोकसभा चुनाव २०१४ का सेमीफ़ाइनल बता रही थी और मीडिया का तर्क था कि यूपी के चुनावी नतीजे केंद्रीय राजनीत को प्रभावित करेंगे जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और हाल ही में कुछ राज्यों में हुए विधानसभा के उपचुनाव के इसका कोई खास असर नहीं दिखा।
इस चुनाव को सेमीफ़ाइनल बताने के पीछे मीडिया को तर्क है कि चूँकि भाजपा २०१४ लोकसभा चुनाव में संभवतः मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट करेगी इसलिए इस चुनाव में मोदी सरकार का प्रदर्शन लोकसभा चुनाव २०१४  में भाजपा की दिशा निर्धारित करेगा। जबकि वास्तविकता इससे काफी परये है। पहली बात तो ये कि राज्यों के विधासभा चुनावो  के मुद्दे, दिशा और नीति केंद्रीय लोकसभा चुनावो से काफी अलग होती है, राज्यों के विधानसभा चुनाव जहाँ क्षेत्रीय मुद्दों पर लड़े जाते है वही केंद्रीय लोकसभा चुनावो का मुद्दा राष्ट्रीय स्तर का होता है। दूसरी बात ये कि केंद्रीय नीतियों का राज्यों के विधानसभा चुनावो में कुछ हद तक असर दिख सकता है लेकिन राज्यों की नीति का केंद्रीय लोकसभा चुनाव में असर दिखे यह लगभग नामुमकिन से बात है। इस लिहाज से देखा जाये तो गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी सरकार का प्रदर्शन किसी भी रूप में २०१४ के लोकसभा चुनावो में भाजपा के प्रदर्शन को प्रभावित नहीं करेगा अलबत्ता इस चुनाव में केंद्र की कांग्रेस सरकार की नीतियाँ गुजरात में कांग्रेस की सरकार आने में कुछ बाधा जरुर खड़ी करेंगी।
जहाँ तक बात लोकसभा चुनाव २०१४ की है तो अभी केंद्र की कांग्रेस सरकार को कोई खतरा नहीं है क्योकि अगर ये सरकार गिरने पर आयेगी तो देश की राजनीत में हावी एम फैक्टर (माया और मुलायम) सरकार को बचा लेंगे और जब २०१४ में लोकसभा चुनाव होंगे तब तक राजनैतिक परिस्थितियाँ काफी ज्यादा बदल चूँकि होगी। जो मुद्दे आज राष्ट्रीय शिखर पर हावी है वो उस समय हवा में गोले की भांति गायब हो जायेंगे और कुछ नए मुद्दे निकलकर सामने आयेंगे। जिस तरह अभी हाल ही डीजल गैस और महंगाई के मुद्दे पर हुआ। सरकार ने सुनियोजित तौर एफ डी.आई का मामला मीडिया के माध्यम से रखा, ताकि राजनीत उलझ जाये सभी दल महंगाई का विरोध करने की जगह एफ डी.आई का विरोध करने लगे और हुआ भी यही एफ डी.आई की गूंज के आगे डीजल गैस और मह्नागाई का मुद्दा गायब हो गया। सरकार के इस काम में उसकी मदद किया हमारी मीडिया ने। मीडिया की भाषा में इसे एजेंडा सेटिंग बोलते है। यानि मीडिया पहले ही सरकार की मंशा के अनुरूप अपना एजेंडा तय कर लेती है और फिर उसी अजेंडे के अधर पर अपनी खबरे चलती है. इसलिए मीडिया द्वारा गुजरात विधानसभा चुनाव को लोकसभा चुनावो के सेमीफाइनल बताना सिर्फ एक भद्दा मजाक है। यहाँ एक बात और स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि राजनीत में कोई भी चुनाव सेमीफाइनल नहीं होता हर चुनाव अपने आप में फ़ाइनल मैच होता जिसका अगले चुनाव से कोई खास सम्बन्ध नहीं होता क्योकि राजनीत हर पल बदलती है जरुरी नहीं जो आज दिख रहा है वो कल हो ही।

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