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“तू राम का नाम लेना हम अल्लाह का नाम गुनगुनायेंगे’’

anurag
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‘’जब-जब हम-तुम इस देश की राजनीति के हाशिये पर आयेंगे,
तू राम का नाम लेना हम अल्लाह का नाम गुनगुनायेंगे’’।
जी हाँ कुछ ऐसी ही कहानी इस समय उत्तर प्रदेश के सियासी फलक पर देखने को मिल रही है जहाँ चल रहे उप-चुनाव में धर्म की राजनीत करने वाले दो राजनैतिक दल जुबानी तलवार में जूझ रहे है। दोनों मकसद एक ही धर्म के सहारे सत्ता में अपनी पहुच को मजबूत करना।
इसीलिए बीजेपी अध्यक्ष ये कहते हुए पाए जाते है कि उतर प्रदेश में जितनी अशांति होगी बीजेपी के सत्ता में आने का रास्ता उतना ही आसन होगा और सपा प्रवक्ता ये कहते हुए मिलते है कि साप्रदायिकता ही बीजेपी के लिए सत्ता कि कुंजी है।
जबकि एक नितांत सत्य यह है कि धर्म ही इन दोनों दलों की दाल-रोटी है ‘एक अल्लाह की खाता है तो दूसरा राम की’। अब जरा सोचीय कि अगर हिन्दुस्तान की राजनीत से धर्म नाम का शब्द हटा दिया जाये जनाधारविहीन इन दोनों राजनैतिक दलों का क्या हश्र होगा?
जाहिर है दोनों का राजनैतिक अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। इसीलिए ये राजनैतिक दल जान बुझकर चुनावी माहौल में धार्मिक शब्दों का जहर घोलते है ताकि इनका राजनैतिक अस्तित्व बना रहे और धर्म के नाम पर बंटी इस देश की जनता दोनों को ही अपना अपना सिरमौर बनाये रखें।
इस स्तर पर मुझे काफी समय पहले जस्टिस काटजू दिया गया एक बयान याद आता है जिसमे उन्होंने कहा था कि इस देश की ९० फीसदी जनता मूर्ख है वो अपनी कम और दूसरो की ज्यादा सुनती है। उस समय इस बयान पर काफी हंगामा भी हुआ था लेकिन मै तब भी इस बयान से सहमत था और आज भी हूँ।
निश्चित तौर पर इस देश की 90 फीसदी जनता मुर्ख है तभी तो धर्म के नाम पर विभाजित ये लोग इन जैसे राजनैतिक दलों को अपना बाप बना लेते है। इनको लगता है कि अगर इनके उप्पर कोई आंच आएगी तो ये राजनैतिक दल उनकी रक्षा करेंगे।
ये मुर्ख ये भूल जाते है जो अपनी रक्षा के लिए खुद केंद्र में बनी सरकारों के तलवे चाटतें हो वो इनकी रक्षा क्या ख़ाक करेंगे ? इन राजनैतिक दलों को तो बस सत्ता में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए तुम्हारा वो मत चहिये जिसके दम पर वो ब्लैकमेलिंग का खेल खेल सके।
बेहतर होगा कि समय रहेते धर्म के नाम पर सियासत कर रहे है इन दलों के मंसूबों को पहचान जाओ। अन्यथा तुम जिन्दगी भर वही ‘दो टके’ के आदमी रह जाओगे और ये तुम्हारे नाम पर करोड़ो अरबो के व्यारे न्यारे करते रहेंगे।

‘’जब-जब हम-तुम इस देश की राजनीति के हाशिये पर आयेंगे,

तू राम का नाम लेना हम अल्लाह का नाम गुनगुनायेंगे’’।

जी हाँ कुछ ऐसी ही कहानी इस समय उत्तर प्रदेश के सियासी फलक पर देखने को मिल रही है जहाँ चल रहे उप-चुनाव में धर्म की राजनीत करने वाले दो राजनैतिक दल जुबानी तलवार में जूझ रहे है। दोनों मकसद एक ही धर्म के सहारे सत्ता में अपनी पहुच को मजबूत करना।

इसीलिए बीजेपी अध्यक्ष ये कहते हुए पाए जाते है कि उतर प्रदेश में जितनी अशांति होगी बीजेपी के सत्ता में आने का रास्ता उतना ही आसन होगा और सपा प्रवक्ता ये कहते हुए मिलते है कि साप्रदायिकता ही बीजेपी के लिए सत्ता कि कुंजी है।

जबकि एक नितांत सत्य यह है कि धर्म ही इन दोनों दलों की दाल-रोटी है ‘एक अल्लाह की खाता है तो दूसरा राम की’। अब जरा सोचीय कि अगर हिन्दुस्तान की राजनीत से धर्म नाम का शब्द हटा दिया जाये जनाधारविहीन इन दोनों राजनैतिक दलों का क्या हश्र होगा?

जाहिर है दोनों का राजनैतिक अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। इसीलिए ये राजनैतिक दल जान बुझकर चुनावी माहौल में धार्मिक शब्दों का जहर घोलते है ताकि इनका राजनैतिक अस्तित्व बना रहे और धर्म के नाम पर बंटी इस देश की जनता दोनों को ही अपना अपना सिरमौर बनाये रखें।

इस स्तर पर मुझे काफी समय पहले जस्टिस काटजू दिया गया एक बयान याद आता है जिसमे उन्होंने कहा था कि इस देश की ९० फीसदी जनता मूर्ख है वो अपनी कम और दूसरो की ज्यादा सुनती है। उस समय इस बयान पर काफी हंगामा भी हुआ था लेकिन मै तब भी इस बयान से सहमत था और आज भी हूँ।

निश्चित तौर पर इस देश की 90 फीसदी जनता मुर्ख है तभी तो धर्म के नाम पर विभाजित ये लोग इन जैसे राजनैतिक दलों को अपना बाप बना लेते है। इनको लगता है कि अगर इनके उप्पर कोई आंच आएगी तो ये राजनैतिक दल उनकी रक्षा करेंगे।

ये मुर्ख ये भूल जाते है जो अपनी रक्षा के लिए खुद केंद्र में बनी सरकारों के तलवे चाटतें हो वो इनकी रक्षा क्या ख़ाक करेंगे ? इन राजनैतिक दलों को तो बस सत्ता में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए तुम्हारा वो मत चहिये जिसके दम पर वो ब्लैकमेलिंग का खेल खेल सके।

बेहतर होगा कि समय रहेते धर्म के नाम पर सियासत कर रहे है इन दलों के मंसूबों को पहचान जाओ। अन्यथा तुम जिन्दगी भर वही ‘दो टके’ के आदमी रह जाओगे और ये तुम्हारे नाम पर करोड़ो अरबो के व्यारे न्यारे करते रहेंगे।

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