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वाह रे लोकतंत्र जो जनता मांगे वो न दे सरकार, और जो जनता न मांगे वो जबरदस्ती दे दे.सरकार

anurag
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केंद्र सरकार द्वारा जनता के हित के लिए खुदरा के क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति देने का फैसला कांग्रेस शासित केंद्र सरकार के लिए धीरे धीरे सही लेकिन एक नयी मुसीबत बनता जा रहा है अभी तक जहाँ विपक्ष ही सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ था वहां आज से देश के व्यापारी भी इस बिल के खिलाफ मैदान में उतर आये है आज पूरे देश में इस बिल के खिलाफ धरना प्रदर्शन और बाजार बंद का आगाज हुआ. एक तरफ जहाँ कांग्रेस शासित केंद्र सरकार इसे संसद के इसी शीतकालीन सत्र में पास कराने पर अड़ी हुई है वही दूसरी तरफ विपक्ष इसके खिलाफ लामबंद हो चुका है और किसी भी कीमत पर इसे पास नहीं होने देना चाहता है. जिसके चलते २३ नवम्बर से शरू हुए संसद के शीत कालीन सत्र का एक भी दिन सुचारू रूप से नहीं चल पाया. अब यहाँ पर दो बाते गौर करने योग्य है पहली ये की ऐसे मामलो में ही क्यों ये सरकार तेजी दिखाती है जिसमे कही न कही विदेशी हित वो भी खास करके अमेरिका का हित छुपा हो और दूसरी ये की जनहित के मामलो में इस सरकार के तेजी को क्या हो जाता है खासकर अगर बात जनलोकपाल को पास कराने की हो .
सरकार जिस तरह एफ.डी.आई. के मसले पर सम्पूर्ण विपक्ष को नजरंदाज करते हुए अपने लिए हुए फैसले को सही बता रही है उसमे कही न कही एक साजिश की बूं आती है.क्योकि स्वाभाविक तौर पर हम सभी ये जानते है की खुदरा निवेश के क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति सार्वजानिक तौर पर देश में छोटे स्तर के व्यापार को प्रभावित करेगी और ऐसा भी नहीं है की केंद्र सरकार इस चीज़ को समझ नहीं रही है वो इस चीज़ को बखूबी समझ रही है लेकिन समझने के बावजूद वो इस बिल को पास कराने पड़ अड़ी हुई है और ऐसा पहली बार नहीं हो रहा बल्कि इससे पहले भी २००८ में इसी सरकार ने सम्पूर्ण विपक्ष को नजरंदाज करके परमाणु करार का प्रस्ताव भी पास करा लिया था तब भी कांग्रेस शासित इस केंद्र सरकार ने यही कहा था की परमाणु करार से देश की जनता का फ़ायदा होगा लेकिन २००८ से आज २०११ तक के सफ़र में क्या फ़ायदा हुआ इस करार से. वही दूसरी तरफ अन्ना का जन लोकपाल जो पूरी तरह से अगर जनता के हित नहीं होता , तो किसी भी रूप में जनता के हित के खिलाफ भी नहीं होता उसे पास कराने में कांग्रेस शासित केद्र सरकार को काफी टाइम लग रहा इस बिल को पास कराने की कोई जल्दी नहीं सरकार को बल्कि इस बिल में सुधार की आवश्यकता बता कर सरकार ने इसे संसद के शीतकालीन सत्र से पहले ही संसद की स्थाई कमेटी के पास भेज दिया था और तब से लेकर आज तक ये बिल स्थाई कमेटी के पास लटका हुआ है और इस शीत कालीन सत्र में भी इसके पास होने की उम्मीद काफी काम दिख रही है.
ऐसे में अब सोचनीये यह है कि जिस जनलोकपाल बिल को जनता कह रही है की सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में पास कराये उसे तो सरकार भूल गयी और जिस एफ डी आई बिल का संपूर्ण विपक्ष सहित देश की जनता भी विरोध कर रही है उस बिल को सदन में पास करने के लिए सरकार पूरी तरह से ताकत लगाये है क्या अब इस बिल को संसद कि स्थाई कमेटी के पास नहीं भेजा जाना चाहिए? क्या अब विवाद कि स्थति नहीं है? फिर सरकार क्यों नहीं इस बिल को भी स्थाई कमेटी के पास भेजती है. क्या अब इसकी जरुरत नहीं है.
जरुरत तो अब भी भी है लेकिन सरकार ऐसा करेगी नहीं क्योकि एफ डी आई का ये बिल केंद्र सरकार ने बनाया है जन लोक पल बिल कि तरह अन्ना ने नहीं. अगर अन्ना ने बनाया होता तो इस बिल को भी स्थाई कमेटी के पास भेजने की आवश्यकता होती क्योकि तब ये बिल वास्तविक तौर पर जनता के हित में होता और कोई चीज़ जनता के हित में हो जाये ये सरकार को कहाँ बर्दाशत वो तो सिर्फ नाटक के लिए कहा जाता है की ये बिल जनता के हित के लिए है पर असल में तो वो सरकार में बैठे लोगो के हित के लिए होता है. वाह रे लोकतंत्र जनता जो मांगे सरकार वो न दे, और जो जनता न मांगे वो सरकार जबरदस्ती दे दे. सरकार के इस फैसले पर अदम गोंडवी एक शेर याद आ गया ” जो डलहौजी न कर पाया ये हुक्काम कर देंगे, कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलम कर देंगे”

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