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संक्रमण काल से गुजरती भारतीय राजनीत और लोकतंत्र में जनता की मज़बूरी

anurag
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इस देश में बहुत पुरानी कहावत है कि चोर चोर मौसरे भाई। ये कहावत वर्तमान दौर में भारतीय राजनीत पर पूरी तरह से फिट बैठती है। संसद के अंदर विभिन्न मुद्दों पर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यरोप लगाने वाले नेताओ पर जब खुद कोई आरोप लगता है तो क्या सत्ता पक्ष और क्या विपक्ष सभी एक जुट होकर उस आरोप को राजनैतिक शक्ल देने लगते है और  ये कहते है कि ये सस्ती लोकप्रियता को पाने का एक हथकंडा है। आज शायद ही ऐसा कोई दल या नेता हो जिसके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप न लग रहे हो पर नेता अपनी गलतियों को मानने की जगह पर उल्टा चोर कोतवाल को डांटे कहावत की तर्ज पर आरोप लगाने वाले को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर देते है और इसमें उनका साथ देती है हमारी सरकारे। कमोबेश कुछ यही स्थिति पिछले एक हफ्तों से चल रहे अरविन्द केजरीवाल बनाम सलमान खुर्शीद वाकयुद्ध में हैं। एक तरफ जहाँ अरविन्द केजरीवाल ये आरोप लगा रहे है कि कानून मंत्री सलामन खुर्शीद और उनकी पत्नी द्वार संचालित ट्रस्ट ने फर्जीवाडा किया है तो वही दूसरी तरह सलमान खुर्शीद इसे केजरीवाल द्वरा सस्ती लोकप्रियता हथकंडा बता रहे है। अब कौन सही है कौन गलत ये तो जांच का विषय है पर इतना जरुर कहूँगा कि पिछले एक पखवारे से भारतीय राजनीत में जो कुछ भी हुआ वह एक स्वस्थ राजनीत का हिस्सा नहीं है। चाहे वो सोनिया गाँधी के दामाद राबर्ट वाड्रा की कंपनी को नियमो कानून को ताक पर रखकर आर्थिक लाभ दिलाने का मामला हो या उत्तर प्रदेश के निवर्तमान मंत्री विनोद कुमार सिंह उर्फ़ पंडित सिंह द्वारा की गयी दबंगई का मामला हो या फिर गुजरात कांग्रेस संसद द्वारा खुले आम सड़क पर असलहे लहराने का मामला हो सभी मामलो में राजनीतिक दलों  की भूमिका नकारात्मक ही रही। किसी भी मामले में किसी भी दल ने ऐसी कोई भी कार्यवाही नहीं की जिसे देखकर ये लगे की देश में वास्तव में लोकतंत्र कायम है। ऐसे में भारतीय राजनीत की दिशा अब किस तरफ मुड रही है यह विचार करने योग्य प्रश्न हैं।
वास्तव में देश गंभीर संक्रमण काल से गुजर रहा है। कभी सोने की चिड़िया कहने वाला भारत आज हिमालय जैसे कर्ज के नीचे दब गया है। इस स्थिति की जिम्मेदारी उठाने के लिए कोई पक्ष पार्टी तैयार नहीं है। कई पक्ष कह रहे हैं कि इस स्थिति के लिए सत्ताधारी पक्ष जिम्मेदार है। सत्ताधारी कह रहे हैं विपक्ष जिम्मेदार है। लेकिन इन सब को यह पता नहीं है कि मैं और मेरी पार्टी जब दूसरे पक्ष की तरफ एक उंगली उठाकर वह जिम्मेदार है यह कहते हैं तब तीन उंगलियां मुझे पूछ रही हैं कि अगर वह दोषी है तो तुम क्या हो?  आज देश की जो हालत बनी है उसके लिए संसद में बैठे हुए ज्यादातर पक्ष और पार्टियां जिम्मेदार हैं। इन बातों को वो भूल गए हैं, यूं कहना गलत नहीं होगा कि सत्ताधारी जब कमजोर होता है तब विपक्ष की जिम्मेदारी बड़ी होती है। पर रोष की बात ये है कि आज सत्ताधारी भी कमजोर हुआ है और विपक्ष भी
आज भ्रष्टाचार इस देश की महत्वपूर्ण समस्या बन गई है। देश के सामान्य लोगों को जीवन जीना मुश्किल हो गया हैजागरूक हो रही है लेकिन इस जागरूकता को  परिपक्व होने में अभी काफी समय लगेगा तब तक हम सभी को लोकतंत्र की मजबूरियों के चलते इन्ही में किसी एक को चुनना होगा. लोकतंत्र में जनता की मज़बूरी क्या है वो इस कहानी के माध्यम से स्पष्ट करना चाहूँगा.
एक बहुत ही सम्पन्न जंगल थाkartoon। नियम के अनुसार उस जंगल का कोई भी जानवर जंगल के किसी दूसरे जानवर को परेशान व उसका शिकार नहीं कर सकता था व बड़े व ताकतवर जानवरो को छोटे व कमजोर जानवरों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी दी गई थी। नियम तोड़ते हुए पकड़े जाने पर कड़ी सजा का प्रावधान था। उसी जंगल मे चूहों का बड़ा विशाल व धनी समूह भी रहता हैं। उनकी सुरक्षा के लिए एक बिल्ली  को नियुक्त किया गया। सभी चूहे मिलकर उसे थोड़ा थोड़ा राशन पानी दिया करते थे। चूंकि प्राकृतिक हैं कि बिल्ली चूहे का शिकार करती हैं सो वो भी कभी कभी चोरी छिपे 1-2 चूहों को खा जाती। बाद में चूहों ने सोचा कि यदि कभी इस बिल्ली का ईमान बदला तो ये हम सभी को खा जाएगी और हम इसका कुछ भी नहीं बिगड़ सकते, सो उन्होने राजा से कहा कि हमें एक और पहरेदार बिल्ली दीजिये ताकि एक का ईमान बिगड़ने पर दूसरा हमारी रक्षा कर सके। राजा ने कहा कि क्या तुम लोग दोनों को दाना-पानी दे सकते हो, तो चूहों ने कहा नहीं- हम बारी बारी से केवल एक को चुनेंगे और उसी को भोजन देंगे दूसरे को तो ऐसे ही रहना होगा। अब दोनों बिल्लियाँ वहाँ रहने लगी और बारी बारी से चूहों के द्वारा दिये जा रहे भोजन के साथ साथ चोरी छिपे चूहों को भी खा रही थी।
कुछ दिनों बाद एक तीसरी बिल्ली की नजर भी इस खजाने पर पड़ी, पर उसे पता था कि नियम के अनुसार मुझे चूहों की रखवाली करने को नहीं मिलेगी सो उसने उनसे सहानुभूति का नाटक प्रारम्भ कर दिया और बाकी की दोनों बिल्लियों पर जंगल का कानून तोड़ने का, चूहों का शोषण करने का और उन्हे मारने, ठगने जैसे कई आरोप लगाने शुरू कर दिये। चूहों को भी लगा कि तीसरी बिल्ली सही कह रही हैं, सो कुछ चूहें उसके साथ हो लिये। अब यहाँ 3 ग्रुप बन गए और रोज इसी तरह के आरोप प्रत्यारोप होने लगे, जिसके कारण चूहों के काम काज के साथ इनकी प्रगति भी रुकने लगी। किसे अपना रक्षक बनाए, कुछ समझ मे नहीं आ रहा था?
सो समस्या बढ़ती देख चूहे राजा के पास गए और सब हाल बता दिया। राजा ने तीनों बिल्लियों को बुला कर पूछा तो पहली ने कहा जब में अकेली भी थी तो मैं सोचती थी मुझे ही खाना हैं सो थोड़ा थोड़ा खाती थी। मैंने तो दूसरे के आने के बाद ज्यादा खाना शुरू किया। दूसरी ने कहा कि पहली ने काफी कुछ खा रखा था इसलिए मैंने बराबर करने के लिय ज्यादा खाना शुरू कर दिया। तीसरी ने कहा कि जिस तरह से ये दोनों खा रही थी तो हमारे लिये कुछ बचता ही नहीं इसलिए मैंने ये सब बवाल किया। राजा ने इनकी दलीले सुन कर इन्हे वापस भेज दिया और चूहों को बुला कर कहा- चूंकि जंगल का नियम हैं इसलिए तुम्हें एक रक्षक तो रखना ही पड़ेगा, ये तुम्हारा शोषण भी करेंगे और तुम्हें खाएँगे भी क्योंकि ये इनका प्राकृतिक स्वभाव हैं जो जाने वाला नहीं हैं। परंतु तुम्हारा शोषण कौन करेगा ये चुनना अब तुम लोगों के हाथ में हैं।
अतः  लोकतंत्र में चुनाव संवैधानिक बाध्यता है और चुनाव में किसी एक चुनना जनता की मज़बूरी  है अब ये जनता पर निर्भर करता है कि  वो अपने शोषण का हक किसे देती है भाजपा, कांग्रेस, सपा बसपा या फिर किसी अन्य  दल को क्योकि है तो सभी एक थाली कट्टे चिठे।

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