chand ka anchal
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मेरे सिराने आ बैठी है ये रात पसर कर,
कुछ है शायद जो कहना चाहती है ये हवाओ की सर-सर.
यही आस पास कहीं तुम तो नही हो,
ऐसी रातो मे कइ बार अयी हो तुम मिलने इन बदलो से उतर कर,
चुपके से देखता है और फिर छुप जाता है,
ये चाँद बनकर आज तुम ही तो नही अये,
कल यहाँ कोई भी ना था,
आज ये तारे तुमने तो नही बिछाए,
तुमने ही इन बादलो को भी बुलाया होगा,
बाते नही करने देते, कमबख्त सामने बैठे है सवर कर,
और ये रात है की जाती नही,मेरे सिराने बैठी है पसर कर.
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