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पढाई किस काम की।

chand ka anchal
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कई साल पहले की बात है, हम तब कक्षा 6 में पढ़ते करते थे। हमारा स्कूल बहुत बड़ा और नामी था समय। मेरी दोस्त जो की मेरे घर के बिल्कुल पड़ोस में रहती थी हमारी कक्षा में ही पढ़ा करती थी उसका नाम नेहा था।  हम साथ ही जाया करते और खेला करते थे। एक बार की बात है नेहा और एक लड़की की किसी बात पे तू-तू में-में हो गयी। गुरूजी सामने पढ़ा थी तो दोनों हलके हलके बाते कर रहे थे। बात कब बिगड़ गयी पता ही न चला। नेहा ने दूसरी लड़की की पुस्तक उठाई और सामने फेंक दी। वो सीधे जाके गुरूजी के मुँह पे लग गयी और गुरूजी का चश्मा च-श-मा हो गया। गुरूजी जबतक चश्मा उठाते तब तक दोनों में उपशब्द तक बात पहुँच गयी, दोनों ने ही एक दूसरे के बाल पकड़ रखे थे। हम अपने मित्रो के साथ बड़े मजे से ये सब देख रहे थे। गुरूजी में दोनों के कस कस के लगये और कान पकड़ कर प्रधानाचार्य के कक्ष में ले गए। दोनों ही के घर से परिजनों को बुलाया गया और खूब सुनाया गया। गुरूजी के चश्मे की भरपाई की गयी दोनों को एक हफ्ते तक कक्षा से निलंबित किया गया। घर आकर नेहा की खूब पिटाई की हुई।  हमारे घर से सारा द्रिश्य नजर आ रहा था। नेहा के पिताजी ने हाथ में बेंत उठा राखी थी और कह रहे थे “क्या यही सीखने को इतने महंगे स्कूल में दाखिला कराया है आपका। यही सिखाया जाता है स्कूल में आपको।” उस दिन नेहा की बहुत मार पड़ी थी।

आज उस बात को करीब 15-16 साल हो गए। अभी भी हम अच्छे दोस्त है। जब मुलाकात होती है तो पुरानी बाते करके बहुत आनंद आता है। आज शाम को घर पहुँचा तो सुनने में आया की पिताजी मंदिर गए है और अड़ोस पड़ोस के सभी लोग भी। कई दिनों से नेहा के घर में नेहा की शादी को लेकर बहस चल रही है। सुना है उसकी बहुत पिटाई भी हुई इस बात पे। नेहा ने जिस लड़के को पसंद किया है उसे उसके घर वाले पसंद नहीं करते। कहते है की उन्होंने नेहा को बहुत पढ़ाया है और अब लड़का भी उसी टककर का होना चाहिए। नेहा के पिताजी अब मंदिर में बैठे है। न सुबह से कुछ खाया है और न पिया है। वो कहते है की जब तक नेहा मंदिर में आके कसम नहीं खाती की वो उस लड़के को भूल जाएगी तब तक घर न जाऊंगा। सभी लोग मना रहे है पर वो मानते नहीं।

घर में नेहा की माँ खुद पे आग लगाने की बात कर रही है। सारा मोहल्ला इकठा हो रखा है। अब नेहा के घर वाले नहीं मान रहे तो सब नेहा को समझा रहे है। किसी तरह नेहा ने हाँ कह दी और मंदिर में जाके कसम भी खा ली। अब सब खुसी-खुसी घर चले गए।

बड़ी ही विचित्र बात है ये भी, पहले तो माँ-बाप अपने बच्चो को अच्छे स्कूलों में भेजते है जहाँ वो पढ़ लिख कर अपने जीवन को अपने तरीके से जीना सिख जाते है। और जब उसे लागू करते है तो घर वाले उसके खिलाफ हो जाते है। कस्मे खिलते है। नाराज हो जाते है।

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