Ghazel Ke Bahane, Desh Ke Tarane
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जिसके लिए ताउम्र कसीदे पढ़े गए,
उसने ही मुझे चैन से जीने नही दिया.
बेइंतेहा मोहब्बत की पार की हदें,
उसने ही कोई नकली नगीने नही दिया.
जिसके लिए मैंने मयखाना उड़ेल दी,
एक पैग जाम उसने पीने न दिया.
रुस्वा हुआ इसकी फ़िक्र नही मुझको,
जिंदगी में चैन से सोने नही दिया.
सता रहा था मंजर मुझे तबाही का,
आहें दबती रही तो भी रोने नही दिया.
लाख कोशिशें थी तेरी ” मधुकर”,
बिखरे हुए मणियों को पिरोने न दिया.
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