Ghazel Ke Bahane, Desh Ke Tarane
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लोग मिल रहे गले हैं, टकराव की तरह;
हाथों में हाथ है, अलगाव की तरह.
चाह कर भी नहीं, हम एक हो सके;
दो दिल मिले जरूर,बिखराव की तरह.
दिखा रहे हैं,सब्जबाग ज़माने वाले;
मायूसी चेहरे पर,मनमुटाव की तरह.
झांक देख रहे, दूसरे का गिरेबान;
मंजिल का राही है, भटकाव की तरह.
बेकार जिंदगी हैं,बिना संगीत के;
उम्र घट रही है बाजारू भाव की तरह.
क़द्र आदमी का आदमी गवाँ रहा
“मधुकर” न दिल में ,सोचो दुराव की तरह.
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