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चुनावी वायदे

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जैसे जैसे चुनाव का दिन समीप आने लगता है वैसे वैसे चुनावी वायदों का फुहार मानसून की फुहार की भांति प्रदेश और देश में कभी टिप-टिप कर तो कभी सावन -भादो की वर्षात की तरह मूसलाधार रूप में बरसने लगता है. हर चार साल में ऐसी चुनावी वायदों की बाढ़ आती है जैसे हिंदुस्तान के धरा पर हर वर्षा वर्षाती नदियों का बाढ़. अधिक खतरनाक यहाँ की प्राकृतिक बाढ़ है उससे भी ज्यादा खतरनाक चुनावी वायदों का बाढ़. दोनों में समानता यह है की – प्राकृतिक बाढ़ मनुष्य के दुष्कर्म ( प्रकृति के साथ खिलवाड़ ) के कारण से भीषण , भयंकर और तबाही मचा देने वाला होता है ठीक उसी तरह जनता का लोभ और नासमझी तथा मुफ्त में प्राप्त करने की गलत इच्छाओं के वजह से तबाही मचाने वाला और कभी पूरा न हो सकने वाला चुनावी वायदों का बाढ़ होता है.
पंजाब का चुनाव और उत्तर प्रदेश का चुनाव दोनों अब कुछ दिनों में दस्तक देने वाला है. आगाज हो चूका है और नेताजी लोग अभी से बरसात करने में मशगूल हो गए हैं. हर दिन विभिन्न पार्टियों के नेता लोग एक से एक नायाब फार्मूला का इज़ाद कर नुक्कड़ नाटक करके नए -नए चुनावी वायदों से जनता को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं. आरम्भ हो गया नेताओं का मनभावन लुभावने वायदा . कोई लैपटॉप मुफ्त में बाँट रहा है , कोई सायकल, कोई सस्ते में चावल देने का वादा कर रहा है. कोई मन्दिर बनबा रहा है कोई किसी जगह को धार्मिक शहर बना रहा है. मंदिर, मस्जिद,चर्च सब को एक में समेटने का दिखावा चालू हो चूका है. जो कभी न मंदिर न मस्जिद न चर्च जाते हैं वे भी उन धार्मिक स्थलों में माथा टेकने या मन्नत मांगने या मोमबत्ती जलाने पहुँच रहे हैं. धन्य है वे साढ़े चार साल पाप और छह महीने धर्म का ढोंग! साढ़े चार साल तक शोषण और छह महीने तक लुभावने वायदे फिर शासक बन मौज. चुनाव से पहले तो देश का चौकीदार बनने की बात और फिर सत्ता में काविज होने के बाद …….
एक मजेदार नारा(!) है- भ्रष्टाचार. यह सभी नेताओं का मनपसंद शब्द है. इस शब्द से सभी नेताओं को बहुत लगाव है. इसका प्रयोग हर चुनाव में बहुत जोर-शोर से होता है. पूरे भाषण , वक्तव्य, और इनके चुनावी मैनिफेस्टो सब में इस शब्द का अनेकों बार प्रयोग होता है. बहुतायत नेता इस शब्द को जप की तरह प्रयोग करते हैं. वे सोचते हैं यह बहुत बड़ा हथियार है. चुनाव से पहले और नतीजा आने के बाद भी यह मौखिक रूप में इस शब्द को घृणा का पुट दे कर वे जप करते रहते है. जो जीत गए वे (अधिकांश ) इस शब्द का प्रयोग लोगों को लुभाने और अपना लोभ बढ़ाने में करते हैं जो हार गए वे आरोप लगाने में इस शब्द का प्रयोग करते हैं. लेकिन इस शब्द का प्रयोग सदा सर्वदा सदावहार रहता है. इसी तरह दूसरा प्रिय शब्द है “गरीबी” . इसका प्रयोग करने में भी नेताजी लोग कंजूसी करना पसंद नहीं करते हैं. वे इस का भी संपुट की तरह जप में प्रयोग करने से नहीं चूकते हैं. चुनाव तक गरीबी हटाने की बात करते हुए और चुनाव के बाद अपने और अपने परिवार तथा सगे सम्बन्धियों का गरीबी मिटाने के लिए. तीसरा पसंदीदा शब्द है “विकास ” . यह आधुनिक लोकप्रिय शब्द है . विकास जनता का देश का समाज का – चुनाव तक. चुनाव के बाद अर्थ का रोना , बजट की कमी का बहाना, केंद्र पर आरोप और अगर इनसब से कुछ बचता है तो विकाश का टेंडर भाई के साले को या ससुर को या पार्टी के वफादार को दे कर उनका विकास करवा देने में कोई कसर नहीं छोड़ते.
लेकिन आज का युग तो तिजारत का युग है तो फिर नेताजी लो व्यापर क्यों न करें?! वे चुनावी मौसम में जनता को खरीदने का प्रयास भी करते हैं! घूस देने का प्रयास भी करते हैं. वे कहीं साड़ी बांटते हैं तो कही रंगीन टी वी . कार्यकर्ताओं को मोटर सायकिल और गाड़ी भी नसीब हो जाता है. चुनाव से ठीक पहले तो पैसे और शराब भी बाँटे जाते हैं. अगर पूर्ण बहुमत न हो तो नेताजी लोग बिकते भी हैं!!
जनता करे भी तो क्या करे ?मजबूरीवश सबका अनर्गल प्रलाप सुनना पड़ता है, लेकिन आज की जनता सब जानती है . सबको ज्ञात है नेता लोग चुनाव के समय कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं .कथनी और करनी में अन्तर होता है ..सबसे आश्चर्य की बात तो तब होती है जब चुनाव का समय आता है तब उनका रूप परिवर्तित हो जाता है , घर घर जाकर वोट मांगनेवाले नेता ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे इनसे आत्मीय कोई हो ही नहीं सकता ,हम में से ही एक हैं ,लेकिन जैसे ही कार्य पूर्ण होता है ,ये सब विस्मृत हो जाता है ,खोखले वायदे खोखले ही रह जाते हैं .जिनके घर जाकर वोट मांगते हैं ,जो अपना सबसे कीमती मत देकर जिताते हैं ;उन्हें ही अनदेखा कर देते हैं .अभी चुनावी दौर आरम्भ होने वाली है ,सभी चुनावी रंग में रंगने वाले हैं .” समाजवादी पेंशन हार गरीब महिला को dee jayegi ,स्मार्ट फ़ोन के बाद अखिलेश सरकार यह वायदा कर रही है ,छह महीने की एक मुश्त पेंशन के स्थान पर हार महीने की पहली तारीख को पेंशन देने की घोषणा की गयी है ,आज हर तरह से ये सरकार जनता को रिझाने का प्रयत्न कर रही है. हो सकता है सत्य भी हो , लेकिन जनता इन वायदे से भ्रमित है .चुनाव से पूर्व बिजली ,पानी आदि फ्री देने वाली आम आदमी पार्टी अब आम से खास हो गयी है .विवादों से घिरी सरकार जनता के वादों को पूर्ण करना तो दूर अपने ही पार्टी के सदस्यों को भी सँभालने में नाकाम है .कोई फर्जी डिग्री के आरोप में ,तो कोई सेक्स स्कैण्डल में संलग्न है तो कोई रिश्वत के आरोप में लिप्त पाया गया . न खाऊँगा न खाने दूंगा वाली सारी आरोप मिथ्या प्रतीत हो रही है .लाल बत्ती नहीं लगाऊंगा गाड़ी में सबके मध्य आम बनकर रहूँगा ,भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिटा दूंगा आदि आदि मिथ्या ही रह गए . पद मिलते ही बुद्धि और विवेक विलुप्त हो जाते हैं .जनता की हित का वचन देने वाले ४% साल तक स्व -हित में लीन हो जाते हैं .परिवार के साथ आगामी सात पीढ़ियों के हितार्थ धन जोड़ने में लिप्त हो जाते हैं .जनता के आशा और विश्वास पर घोर आघात पहुँचाने वाले नेता को इससे कोई मतलब ही नहीं होता .जनता अपने सबसे कीमती मत देने से ठगा सा अनुभव करती है ,तृषित नयन से तकती ही रह जाती है .
रेल का किराया ,बस भाड़ा ,मंहगाई काम कर दूंगा , गरीबी मिटा दूंगा आदि की कीमत घटने के बदले बढ़ते ही जा रहे हैं . देश से सभी कुरीतियां मिटा दूंगा ,बेटियाँ सुरक्षित रहेगी ,नशा मुक्त भारत बनाऊँगा आदि .लेकिन क्या बेटी सुरक्षित है ? आज़ादी के नाम पर अस्मत लुटे जाते हैं ,घर ,कार्यालय ,ट्रेन में ,बस में ,सड़क ,गली मोहल्ले अर्थात कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं, एक साल से ७० साल तक की महिलायें असुरक्षित हैं .निर्भया काण्डमें उबलते देश की जनता के संघर्ष को देखकर ऐसा प्रतीत हुआ था कि अब ऐसा घृणित कार्य नहीं होगा ,देश के हर नेता पक्ष के हों या विपक्ष के देश की जनता को आश्वासन दिया की अब नहीं होगा ऐसा कुकर्म .लेकिन हुआ क्या ? टी .वी. हो या समाचारपत्र इन ह्रदय विदारक घटनाओं का उल्लेख रहता ही है . क्या होगा देश का जहाँ महिलाएँ असुरक्षित हैं .कैसे भरोसा किया जायेगा इन नेताओंके के कथन पर .
अभी पंजाब में भी चुनाव होने वाला है. राजनेता लगे हैं जनता को रिझाने में. बिना चुनाव के ही मुख्य मंत्री पद के लिए छींटाकशी आरम्भ हो गया है. जैसे ही चुनाव का समय आनेवाला होता है सभी राजनेताओं को याद आ जाती है देश की ,राज्य की , भोले-भाले जनता की. सब मनभावन वायदे को परोसना आरंभ कर देते हैं. इसका श्रेय अम्मा यानी जयललिता को जाता है. उनको देख कर सभी पार्टियों के नेता जुट जाते हैं जनता को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु.
सबसे अधिक चकित मैं तब होती हूँ जब एक दूसरे के विरोध में बोलना की सिलसिला में कभी-कभी मर्यादाओं सीमा को पार कर जाते हैं.
भ्रष्टाचार हटाने की बात करने वाले नेता जनता को मिथ्या वायदा करना और देश की उन्नति की बात ,गरीबी दूर करने की बात , महंगाई दूर करने की बात ,महिला सुरक्षा, बेटी बचाने की बात, बेटी पढने की बात, मुफ्त शिक्षा की बात , मुफ्त बिजली और पानी की बात सबकुछ केवल वोट प्राप्त करने के लिए, इस तरह की लुभावने वायदे कर जनता को ठगने का काम करते हैं. भ्रष्टाचार की बात करने वाले जो जनता को ठगने का काम करते हैं वह भ्रष्टाचार नहीं है तो क्या है? यह तो सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है. किसी के विश्वास को ठेस लगाना , झूठे आश्वासन दे कर किसी के आशा को निराशा में परिवर्तित करना क्या भ्रष्टाचार नहीं है ? धर्म -ग्रंथों में उल्लेख है कि किसी के विश्वास को तोडना पातक का अधिकारी होना है. एक मानव को ठगना जब पाप होता है तो देश की समस्त जनता को ठगने से क्या होता होगा? लेकिन देश में राजनीति ऐसी गलियारा है जहाँ जो पाप पुण्य ,विश्वास ,अविश्वास सब ग्राह्य होता है. यहाँ सब जायज है. यहाँ तक कि बाहुबलियों को संरक्षण देना भी उनके परम कर्तव्य में आता है.
पद ग्रहण करते ही ये सब भूल जाते हैं.ये सोने के चम्मच ले कर इस धरा पर आते हैं, कुछ भाग्यवश भी आ जाते हैं, किसी-किसी को पैतृक विरासत के रूप में भी यह शौभाग्य मिलता है,किसी-किसी को पका-पकाया भोजन के रूप में यह अवसर मिलजाता है. ऐसे नेताओं को कुछ करना तो पड़ता नहीं है, पिता या माता के कारण यह मिल जाता है. इन्हें समाज सेवा से कोई सरोकार नहीं होता है और वे जानते भी नहीं हैं की समाज सेवा क्या होता है. नेताओं का पद ऐसा मादक नशा है कि जो एक बार स्वाद चख ले तो वह इस नशा से विमुक्त नहीं हो पाता है.
जनताओं का कर्तव्य है कि वे ऐसे नेताओं को पहचाने और उनको चुनाव में सबक सिखाये . नोटा का प्रयोग करे और अनुपयुक्त नेताओं को चयनित न करें. ‘सावधानी हटी दुर्घटना घटी’ यह सभी जानते हैं , अतः चुनाव के समय असावधानी न करें !

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